सपा आलाकमान ने भले ही यहां बहुसंख्यक हिन्दू मतों को अपने पाले में लाने के लिए जिला पंचायत अध्यक्ष पद अल्पसंख्यक के बजाय बहुसंख्यक समुदाय को दिलाया हो, लेकिन यह फैसला सपा के लिए कई नयी मुसीबतें खड़ी करने वाला सिद्ध होगा। इसके दुष्परिणाम आने शुरु हो गये हैं तथा यहां के अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकांश लोग बसपा से जुड़ने की सोचने लगे हैं। आगामी विधानसभा चुनाव में लाभ उठाने के नाम पर उठाया यह कदम सपा के लिए घातक सिद्ध होने जा रहा है।
यह सभी जानते हैं कि जिले में जमीनी पकड़ में महबूब अली सपा में सबसे मजबूत नेता बन चुके हैं। उन्हें ऊपरी दबाव के जरिये कमजोर नहीं किया जा सकता। आला कमान के फैसले को भले ही महबूब अली मानने को मजबूर हुए हों लेकिन उनके समर्थक इससे बेहद खफा हैं। उनमें बहुत से जिले के दूसरे केबिनेट मंत्री कमाल अख्तर और विधायक अशफाक खां द्वारा रेनू चौधरी की पैरवी से भी खिन्न हैं। इन लोगों का कहना है कि ये दोनों नेता अपना वजूद बढ़ाने के फेर में महबूब अली की ताकत को कम कराके अल्पसंख्यकों को ही कमजोर करना चाहते हैं। ऐसा मानने वाले महबूब समर्थक इन दोनों नेताओं का आने वाले चुनाव में विरोध कर सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो हसनपुर और नौगांवा सादात आगामी चुनाव में सपा के हाथ से निकल सकते हैं।
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उधर लंबे समय से महबूब अली के साथ खड़ी तुर्क बिरादरी ने भी सत्ता में अपनी हिस्सेदारी का दावा ठोक कर एक नयी मुसीबत खड़ी कर दी है। उनका कहना है कि जब जाटों को जिला पंचायत सौंप दी तो ब्लॉक प्रमुख का एक पद तुर्कों के हिस्से में भी आना चाहिए।विधानसभा चुनावों से लेकर बीते लोकसभा चुनाव तक महबूब अली का साथ देने वाली तुर्क बिरादरी का यह दावा तर्कसंगत है।
इस गोलबंदी में पूर्व विधायक तथा बीते लोकसभा चुनाव में सपा नेता कमाल अख्तर की पत्नि हुमैरा अख्तर के सामने चुनाव लड़ने वाले तुर्क नेता मुन्ना आकिल का हाथ है। वे अपने भतीजे को महबूब अली के भतीजे की जगह जोया ब्लॉक प्रमुख के लिए महबूब का समर्थन मांग रहे हैं।
यहां महबूब फंस गये हैं। यदि वे तुर्कों को समझाने में विफल रहे और अपने भतीजे को ब्लॉक प्रमुख बनाने में सफल रहे तो नाराज तुर्क विधानसभा चुनाव में महबूब के खिलाफ जा सकते हैं।
यदि यह वोट बैंक बसपा के नौशाद इंजीनियर की ओर मुड़ गया तो महबूब के लिए खतरे की घंटी बजनी तय है। यदि वे उनकी बात मानते हैं तब भी ब्लॉक प्रमुख पद उनके परिवार से चले जाने से उनकी सियासी ताकत तो कम हो ही जायेगी।
कई दशक तक सपा जिलाध्यक्ष पद पर यादव बिरादरी का वर्चस्व रहा है। इसमें बुद्ध सिंह यादव लंबे समय तक रहे तथा डा. जितेन्द्र यादव को भी इस पद पर सेवा का मौका मिला था। आजकल यह पद विजयपाल सैनी के पास है। सैनी सपा के दागदार नेताओं में शुमार होने के कारण अपनी बिरादारी के मत सपा की ओर नहीं मोड़ सके। सैनी बाहुल्य क्षेत्र में बीते जिला पंचायत चुनाव में वे अपनी पत्नि को भी नहीं जिता पाये।
यादव समाज का कोई भी व्यक्ति जनपद में सत्ता के बावजूद किसी मजबूत पद पर नहीं है। रेनू चौधरी की ताजपोशी के बाद उनके भी कान खड़े हो गये। कह रहे हैं कि सपा सुप्रीमो के दरबार में कम से कम विधायकी उम्मीदवार के लिए गुहार लगायेंगे। जिलाध्यक्ष भी बिरादरी के हिस्से में आ जाये तब भी सांत्वना महसूस होगी। यदि इतना भी नहीं हुआ तो, समझेंगे सपा में अमरोहा जिले के यादवों का कोई महत्व नहीं। यादवों की यह नाराजगी भी सपा को कुछ न कुछ क्षति ही पहुंचा सकती है।
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अमरोहा में मुस्लिम अल्पसंख्यकों में सबसे बड़ा वोट बैंक सैफी समुदाय का है। यह बिरादरी सपा के साथ खड़ी रही है। लेकिन सपा ने बीते विधानसभा और न ही लोकसभा चुनाव में सैफी समुदाय के किसी नेता को उम्मीदवार बनाया। इस बिरादरी से यदि किसी को उम्मीदवार नहीं बनाया गया तो इनका नाराज होना स्वाभाविक है।वयोवृद्ध सैफी नेता डा. हनीफ सैफी चकनवाला भी सपा के खिलाफ बसपा में ताल ठोक रहे हैं। उनका कहना है कि सैफी समाज के वोटों से सत्ता प्राप्त करने वाली सपा को बिरादरी से कुछ लेना नहीं। उनकी नाराजगी भी जिला पंचायत चुनाव में सैफियों को तबज्जो न देने के कारण है।
उधर इस प्रकरण में थोड़ा जाट बिरादरी की मानसिकता का भी हमने जायजा लिया। गन्ना भुगतान न होने तथा किसानों की दिक्कतें बढ़ने से जाट समुदाय सपा से बिल्कुल खुश नहीं।
यदि चन्द्रपाल सिंह खुद भी सपा के लिए वोट मांगने आयेंगे तो किसान खासकर जाट, सपा को वोट देने को तैयार नहीं होने वाले।
महबूब अली के खिलाफ जिला पंचायत चुनाव में चन्द्रपाल सिंह को तरजीह देने से भले ही वे संतुष्ट हों लेकिन चौ. चन्द्रपाल सिंह ने अपने राजनैतिक जीवन में उन्हीं तत्वों का साथ दिया जो 1980 के दशक से लेकर 2000 तक यहां चले किसान आंदोलनों के खिलाफ थे। जबकि इन किसान आंदोलनों में जाट भाकियू और रालोद के रुप में संघर्ष कर रहे थे। अमरोहा विधानसभा में तो जाट इसलिए भी सपा का विरोध जारी रखेंगे कि यहां से एक जाट को जिला पंचायत प्रमुख बनने का प्रबल विरोधी सपा से उम्मीदवार है।
ताजा आकलन के अनुसार चौ. चन्द्रपाल सिंह की पुत्रवधु रेनु चौधरी को जिला पंचायत का अध्यक्ष बनवाने से सपा को कई बड़े खतरों से जूझना होगा। इससे अमरोहा जिले के सभी विधानसभा क्षेत्रों में लाभ के बजाय सपा को नुकसान की ही अधिक संभावना है। हालांकि सपा रणनीतिकारों द्वारा सकीना बेगम को रास्ते से हटाकर रेनू चौधरी को चुनावी लाभ के लिए आगे लाया गया था। सपा के इस फैसले का परोक्ष लाभ बसपा को मिलना अनिवार्य होगा।