विधानसभा उपचुनाव परिणाम : यूपी में कांग्रेस के अच्छे दिन आने के संकेत

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उत्तर प्रदेश विधानसभा के तीन सीटों पर हुए उपचुनाव में सपा, भाजपा और कांग्रेस को एक-एक सीट पर विजय हासिल हुई है। इस परिणाम को लेकर राज्य के विधानसभा चुनावों के हालात पर चर्चा शुरु हो गयी है।

उपचुनाव से पूर्व तीनों सीटें सपा विधायकों के देहान्त से खाली हुई हैं। सन 2012 में इन सभी स्थानों पर जहां सपा विजयी हुई थी वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी जगह सफलता हासिल की थी।

2012 के मुकाबले में सपा को नुकसान है। जबकि कांग्रेस दोनों चुनावों से लाभ में है। उसने इस विधानसभा उपचुनाव में दोनों दलों से बेहतर प्रदर्शन किया है। बसपा एक तथा रालोद दो सीटों पर लड़े तथा दोनों को कोई सीट नहीं मिली।

यदि इन उपचुनावों को आगामी विधानसभा चुनावों का सेमीफाइनल मान लिया जाये तो कांग्रेस, भाजपा तथा सपा तीनों में कांटे की टक्कर होगी। बसपा, जिसे कुछ लोग सबसे मजबूत मानकर चल रहे थे, उपचुनाव में उसका तीसरा स्थान भी नहीं आया। इसका कारण यह रहा कि मुस्लिम तथा पिछड़ा वर्ग सपा से हटकर कांग्रेस की ओर चल पड़े हैं। बसपा की ओर उनका झुकाव नहीं हो पा रहा।

कांग्रेस, रालोद, जदयू तथा राजद यदि बिहार के महागठबंधन की तर्ज पर एक साथ हो जायें तो यह गठबंधन सत्ता पर कब्जा करने में सफल हो सकता है। बसपा या सपा से इस महागठबंधन को दूरी बनाने में ही लाभ रहेगा। यदि ये दल एक मंच पर आयें तो यहां के किसान, पिछड़े, मुस्लिम तथा दलितों और जाटों का बड़ा भग इस गठजोड़ के पक्ष में मतदान करेगा।

सवाल उठता है कि ऐसा क्यों होगा?

हम जानते हैं कि ग्रामीण क्षेत्र के लोग भाजपा तथा सपा दोनों से ही नाराज हैं। किसान तथा मजदूरों की हालत दोनों ही सरकारों की नीतियां से खराब हो गयी है। सपा से वे पहले ही खफा थे। नयी उम्मीद में उन्होंने भाजपा को वोट दिया। जिससे लाभ होने के बजाय हालत और भी बदतर हो गयी। ऐसे में इन लोगों की बड़ी आबादी कांग्रेस के पक्ष में लामबन्द हो रही है।

मुस्लिम भी समझ रहे हैं कि सबको परखने के बाद कांग्रेस का शासन ही उन्हें अच्छा लगा। किसान खासकर जाट एक बार फिर से रालोद की ओर मुखातिब हैं तथा पिछड़े और दलितों का कुछ वोट जदयू तथा रालोद के साथ भी जुड़ेगा। इसको देखकर अल्पसंख्यक मुस्लिम मतदाता भी सपा या बसपा के बजाय कांग्रेस के नेतृत्व वाले इस महागठबंधन में स्वतः ही चले आयेंगे। वे भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर पराजित करने की क्षमता वाले दल या गठबंधन को ही इस बार मत देने का मन बना चुके हैं। सपा में देवबंद की सीट कांग्रेस को मिलना इस बात का ठोस सबूत है।

यदि कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ती है तो सत्ता तक पहुंचने की उसकी चाहत पूरी होने में सन्देह है। उपरोक्त गठजोड़ ही उसे दशकों से सत्ताविहीनता का शिकार होने से बचा सकता है तथा भाजपा, बसपा और सपा में से किसी को भी लखनऊ की सत्ता तक पहुंचने से रोक सकता है।

-जी.एस. चाहल.