वैचारिक टकराव विकास विरोधी

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विशाल बहुमत की सरकार केन्द्र में देने के बावजूद देश की जनता को राहत नहीं मिली। मिलीजुली अल्पमत सरकारों के शासन में भी देश में ऐसा वैचारिक टकराव कभी देखने में नहीं आया, जैसा विशाल बहुमत की सरकार के अल्पकालीन शासन में देखने को मिल रहा है।

विकास के मुद्दे के बजाय सत्ता और विपक्षी दल खामोश हैं। देश में गरीबी, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और बदहाली घटने के बजाय बढ़ रही है लेकिन इन समस्याओं के समाधान को भूलकर देश के नेता आपसी लड़ाई में अपनी सारी शक्ति खर्च करने में तुले हैं।

केन्द्र की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी विभिन्न धर्मों तथा अलग-अलग विचारधाराओं के लोगों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ऐजेंडे को थोपने का प्रयास कर रही है। सत्ता के कार्यों में भाजपा की भगवा टोली और आरएसएस बराबर हस्तक्षेप कर रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की खामोशी के कारण ऐसे तत्वों का मनोबल बढ़ रहा है और वे सत्ता पर हावी होते जा रहे हैं। यही कारण है कि राष्ट्रविरोधी तत्वों को हिन्दू कट्टरवाद के बहाने अपना काम करने तथा लोगों को उकसाने की ऊर्जा प्राप्त हो रही है। देश के कई हिस्सों पर देश विरोधी तत्व राष्ट्रीयता के खिलाफ नारे और आपत्तिजनक बयान देकर माहौल खराब करने का प्रयास कर रहे हैं।

दिल्ली की जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी में राष्ट्रविरोधी नारे लगाकर राष्ट्रीय एकता के खिलाफ भड़काऊ बयान देकर कुछ तत्वों ने जो व्यवहार किया, उससे पूरे देश में गलत संदेश गया है। नारे लगाने वाले अधिकांश तत्व पुलिस की पकड़ से बाहर हैं तथा छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को देशद्रोह का आरोपी बनाकर पुलिस ने जेल भिजवाया है।

इससे छात्रों और शिक्षकों में नाराजगी है तथा इसे लेकर पूरे देश में राजनीति शुरु हो गयी है। पुलिस तथा केन्द्र सरकार की मंशा पर सवाल उठाने वालों को देशद्रोही ठहराने का प्रयास हो रहा है। जिसका विरोध देश के दूसरे हिस्सों में भी शुरु हो गया है।

गृहमंत्री राजनाथ सिंह के विवादित बयान और प्रधानमंत्री की खामोशी से समस्या और जटिल होती जा रही है। इस समस्या के समाधान के लिए पीएम को गंभीरता से लेना चाहिए था। उनकी खामोशी से भी मामला बिगड़ रहा है। विपक्ष और भाजपा के प्रवक्ताओं की बहस और तू-तू-मैं-मैं इस संवेदनशील प्रकरण को जटिल मोड़ तक ले जाने वाली है।

कई टीवी चैनल इस पर बहस आयोजित कर विवाद को और हवा देने का काम कर रहे हैं। केन्द्र को इस संवेदनशील मुद्दे को गंभीरता से लेकर इसके त्वरित समाधान का प्रयास करना चाहिए। देर करने से न तो किसी राजनैतिक दल और न ही देश का भला होगा।

-जी.एस. चाहल.