जाट आंदोलन : धोखे की राजनीति ने हरियाणा को आंदोलन की आग में झोंका

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लगता है हरियाणा के जाट आंदोलन से सरकार कोई सबक नहीं ले रही। प्रधानमंत्री की खामोशी सरकार की मंशा पर सवाल खड़ा करती है। देश की राजधानी को तीन ओर से घेरे में लेने वाला राज्य जल रहा है तथा केन्द्र और राज्य में एक ही दल की सरकार होने के बावजूद शांति बहाली का कोई हल नहीं निकाला जा रहा। इससे भी खतरनाक बात यह है कि यह आंदोलन लगातार उग्र होता जा रहा है तथा उसका विस्तार दिल्ली और उत्तर प्रदेश में होना शुरु हो गया है। हरियाणा से मिले पंजाब और राजस्थान में जाटों की संख्या बहुत अधिक है। समस्या के निदान में देरी का कुप्रभाव इन दोनों राज्यों में भी पड़ेगा। केन्द्र तथा राज्य सरकारों की छल-छद्म की राजनीति इसके लिए पूरी तरह उत्तरदायी है।

जाट समुदाय प्रखर राष्ट्रवादी, धर्मनिरपेक्ष, न्यायप्रिय तथा लोकतांत्रिक प्रणाली का पक्षधर रहा है। देश की आन-बान और शान के बलिदान देने में जाट हमेशा आगे रहे हैं। पूरे देश को भोजन मुहैया कराने में भी जाट अहम भूमिका में हैं। उन्हें सभी सरकारें, जिनके मुखिया हमेशा गैर-जाट रहे हैं, जय जवान -जय किसान के नारे की घुट्टी पिलाकर उनका शोषण करते रहे हैं। यह कर्मशील तथा बलिदानी समुदाय अपने साथ छल या धोखा करने वालों को कभी क्षमा नहीं करता। क्यांकि वह किसी के साथ छल-कपट की मंशा नहीं रखता।

लोकसभा चुनाव में हरियाणा ही नहीं बल्कि पंजाब, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश तथा मध्य प्रदेश में नरेन्द्र मोदी पर भरोसा करके जाटों ने विजय दिलायी। हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी भाजपा का साथ दिया। जाटों को भरोसा था कि उन्हें केन्द्र और राज्य में उचित आरक्षण मिलेगा साथ ही मोदी ने किसानों की फसलों पर जो पचास फीसदी लाभ दिलाने का वादा किया था वह भी पूरा होगा।

जाटों को जो आरक्षण का लाभ भाजपा की परवर्ती सरकारों से मिल रहा था, भाजपा के आते ही वह भी समाप्त हो गया। जाटों को बहकाते हुए डेढ़ साल से अधिक समय हो गया तो वे केन्द्र व राज्य सरकारों की मंशा भांप गये और उनके धैर्य का बांध टूट गया। जाटों द्वारा बार-बार कहने के बावजूद भाजपा सरकार के मुखिया ने उसे बिल्कुल नजरअंदाज कर दिया। सरकार ने यह भी नहीं अनुमान लगाया कि यदि जाट बिगड़ गये तो उसका परिणाम क्या होगा? शायद अमित शाह, नरेन्द्र मोदी और उनके सलाहकार गुजरात के पटेल आंदोलन की तरह ताकत के बल पर इसे दबा देने की खुशफहमी में खामोश रहे। एक गंभीर समस्या से नजर चुराने का प्रतिफल आज देश की बेकसूर जनता भुगत रही है।

जाट एकता मजबूत होगी :

सरकार द्वारा पैदा की इस समस्या का ठीकरा भाजपा विपक्ष पर फोड़ने का प्रयास करेगी लेकिन दशकों से गुटबंदी का शिकार हुए जाट इस आंदोलन से एकजुट हो जायेंगे। इसकी शुरुआत हो गयी है। कई धड़ों तथा कई राजनैतिक मंचों में बंटी यह बिरादरी आपसी विवाद भूल एकजुट होनी शुरु हो गयी है।

सभी जाट, आरक्षण के मुद्दे पर एकजुट हो रहे हैं। वे बसपा, कांग्रेस, रालोद, भाजपा अथवा किसी भी दल में हों, लेकिन इस मुद्दे पर वे एक साथ, एक मंच पर आ गये हैं। वे कल तक जिस भाजपा के पक्ष में खड़े थे, आज सबसे अधिक उसी के विरोध में खड़े हो गये हैं। भाजपा उन्हें आरक्षण की घुट्टी देकर शांत करने में यदि सफल भी रही, तब भी अधिकांश जाट उसके खिलाफ ही रहेंगे।

भू-अधिग्रहण बिल तथा कृषि सब्सिडी खत्त करने से तो केवल जाट ही नहीं बल्कि गुर्जर, यादव, सैनी तथा वे सभी समुदाय भाजपा से नाराज हैं जो कृषि के सहारे जीवन यापन करते हैं। जाट खेती को अपना पुश्तैनी धंधा मानती है, इसलिए वह कृषि विरोधी नीतियों के कारण सरकार से पहले ही खफा थी।

आंदोलन अहिंसक ही है :

इस आंदोलन में किसी भी व्यक्ति पर हमला या मारपीट नहीं की गयी। पूरा आंदोलन अहिंसक है। कई आंदोलनकारी मारे जा चुके लेकिन जाटों ने किसी पर भी हमला नहीं किया। तोड़फोड़ या आगजनी की घटनायें खतरनाक मोड़ तक जा पहुंचीं। यह काम उन तत्वों का है जो ऐसे मौकों का नाजायज लाभ उठाते हैं और आगजनी और लूटपाट करते हैं। इसमें पुलिस और प्रशासन की चूक या लापरवाही उत्तरदायी है।

लोगों की जान-माल की सुरक्षा का दायित्व सरकार पर है। एक शांत और प्रगतिशील राज्य में इस तरह के तांडव के लिए वहां की सरकार उत्तरदायी है।

सीएम खट्टर और उनके सलाहकारों से पूछा जाना चाहिए कि वे अबतक कहां सो रहे थे। जो आग डेढ़ साल से सुलग रही थी, उसका आभास उन्हें पहले से क्यों नहीं हुआ? आग फैल जाने के बाद सरकार की नींद तब टूटी है जब बहुत कुछ स्वाहा हो गया। जो सरकार एक मामूली चिंगारी को नहीं बुझा सकी, उसपर विराट दावानल को काबू करने का भरोसा कैसे किया जा सकता है?

सेना आंतरिक समस्याओं के लिए नहीं :

सरकार की प्रशासनिक अक्षमता से जब हालात काबू से बाहर होते हैं तो कई बार सेना बुलाई जाती है। गुजरात में यही हुआ, अब हरियाणा में भी सेना बुलाई गयी। सरकार को पता होना चाहिए कि सेना में हरियाणा, पंजाब तथा यूपी के जाट अच्छी तादाद में हैं। कोई परिवार इससे अछूता होगा जिसका कोई सदस्य सेना में न हो। कई परिवार तो ऐसे हैं जिनके सभी बालिग सेना में हैं।

यदि जाट बिरादरी को दबाने के लिए सेना का प्रयोग किया गया तो यह देश के लिए दुर्भाग्यशाली होगा। सेना में तैनात हमारे जवानों का मनोबल गिरेगा और एक वीर जाति सेना में जाने से हतोत्साहित होगी।

जाट नेताओं को एकजुट होकर शाति के लिए आगे आना होगा :

बिरादरी के जुम्मेवार लोगों को हिंसक घटनाओं से दूर रहकर शांतिपूर्ण आंदोलन के लिए अपने-अपने गांवों में नवयुवकों को समझाना चाहिए। हिंसा और आगजनी किसी भी तरह जायज नहीं ठहरायी जा सकती। हम देशभक्त हैं, तथा कोई भी देशभक्त आम जनता या अपने देश की संपत्ति को क्षति नहीं पहुंचाता।

-जी.एस. चाहल.