मायावती, अखिलेश और यादव सिंह : पैसा, रसूख और सत्ता का खेल

यादव-सिंह-yadav-singh

यह कहानी कई मायनों में फिल्मी भी लग सकती है। एक साधारण नौकरी करने वाला इंसान 'असाधारण’ व्यक्तित्व बन जाता है। बहुत तेजी से वह सीढ़ियां चढ़ता जाता है। एक दिन ऐसा आता है जब वह फंसता है। फिर भी उसके संरक्षणकर्ता के हाथों की मजबूती के कारण उसे क्लीन चिट मिलती है। जांच होती है, वह बच जाता है। सबको पता होता है कि उसके पास क्या है, क्या नहीं।

इस बार वह पकड़ा गया है। कहानी का पात्र शिकंजे में है। उसने हालांकि हर हथकंडे को अपनाया, लेकिन वह गिरफ्त में आ ही गया। मगर भरोसा करना मुश्किल है कि वह बच सकता है। इतिहास तो यही बताता है कि कानून से देर-सवेर ऐसे लोग बच निकले हैं जिनका रसूख था और जिनकी धमक सत्ता तक थी।

इस कहानी को मेरे एक मित्र ने मुझे बहुत पहले सुनाया था।

अब जबकि उत्तर प्रदेश का चर्चित इंजीनियर याव सिंह गिरफ्तार हो गया है तो उस कहानी को दोबारा पढ़ना और समझना आसान हो गया है।

मायावती-के-जमाने

मायावती के जमाने में जितना आनंद यादव सिंह ने लिया इसकी चर्चा छिपाये नहीं छिपती। यादव सिंह को नोएडा ऑथरिटी का चीफ इंजीनियर मायावती के मुख्यमंत्री काल में ही बनाया गया। उसके अमीर बनने की कहानी की शुरुआत भी वहीं से होती बतायी जा रही है। यह भी बताया गया है कि उसकी सत्ता की ताकत की कहानी भी मायावती काल से शुरु हुई है।

1995 में उत्तर प्रदेश में मायावती के मुख्यमंत्री बनने पर 19 इंजीनियरों की तरक्की को परे करते हुए यादव सिंह को प्रोजेक्ट इंजीनियर बनाया गया। बताया जाता है कि यादव सिंह उस हैसीयत के काबिल नहीं था क्योंकि उसकी योग्यता उतनी नहीं थी। मगर उसपर मेहरबानी की गयी।

सबसे कमाल यह रहा कि यादव सिंह को पद के काबिल बनाने के लिए और डिग्री हासिल करने के लिए तीन साल का वक्त भी दिया। शायद यादव सिंह ऐसा पहला अधिकारी होगा जिसने इतिहास रचा क्योंकि ऐसा पहले सुना नहीं गया था।

आगरा का यादव सिंह इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किये हुए है। यादव ने नोएडा ऑथरिटी में 1980 में जूनियर इंजीनियर के पद से नौकरी की शुरुआत की।

2002 में यादव नोएडा का चीफ मेंटेनेंस इंजीनियर बन गया। विभाग का सबसे पद उसके पास था। नौ साल तक वह वहीं डटा रहा।

अखिलेश-यादव

बताया जाता है कि 2012 में अखिलेश यादव ने दिखावे के लिए यादव सिंह पर शिकंजा कसा। यादव की जांच हुई और उसे सीबीसीआइडी से क्लीन चिट मिल गयी।

उसके बाद यादव सिंह के दिन और बहुर गये। यादव सिंह नोएडा के साथ-साथ ग्रेटर नोएडा ऑथरिटी और यमुना एक्सप्रेसवे की जिम्मेदारी संभालने लगा। यानि जांच के बाद तरक्की हो गयी।

नवंबर 2014 में आयकर विभाग ने यादव सिंह के ठिकानों पर पहली बार छापेमारी की। 2014 के दिसंबर में यादव सिंह निलंबित हुआ।

अगस्त 2015 में सीबीआइ ने यादव सिंह और उसके परिवार के लोगों के ठिकानों पर छापेमारी की।

यादव सिंह के आवास पर करोड़ों की संपत्ति मिली थी जिसमें हीरे और सोना-चांदी भारी मात्रा में शामिल थे। नकदी तो यादव सिंह के घर खड़ी गाड़ियों से भी भारी मात्रा में मिली थी।

कहा जा रहा है कि मायावती से लेकर अखिलेश यादव के राज में यादव सिंह फलाफूला, इसके पीछे यादव सिंह की करीबी उन लोगों से है जो सरकारों के करीबी हैं।

अब विधानसभा चुनाव नजदीक हैं इसलिए उत्तर प्रदेश की सरकार नहीं चाहेगी कि विपक्ष उसपर हमलावर हो। यादव सिंह पर हमने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को चुप्पी साधे हुए अधिक देखा है।

चर्चायें यह भी होती रही हैं कि मलाई खाने वाले और खिलाने वाले कुछ भी बोलने से बच रहे हैं क्योंकि पता चला तो जायका बिगड़ सकता है।

-गजरौला टाइम्स डॉट कॉम के लिए हरमिन्दर सिंह.

(ये लेखक के अपने विचार हैं)