आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल, गुजरात में पाटीदार आन्दोलन के नेता हार्दिक पटेल और जेएनयू के छात्र नेता कन्हैया कुमार का उदय भारतीय राजनीति का भविष्य तय करेगा। इसी के साथ देश का बुजुर्आ नेतृत्व विदा लेगा तथा देश की भावी राजनीति की बागडोर शिक्षित नवयुवकों के हाथ में होगी। देश की 35 फीसदी युवा आबादी परम्परागत नेताओं से आजिज आ चुकी। यही कारण है कि नवयुवकों के बीच से ही देश का भावी नेतृत्व निकलकर बाहर आना शुरु हो गया है।
यह हमारे देश का दुर्भाय रहा है कि पुराने नेताओं ने बहुत ही योग्य और समर्पित युवाओं को इस्तेमाल तो खूब किया लेकिन नेतृत्व के लिए उन्हें आगे नहीं आने दिया।
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सरदार भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव को बहुत कम आयु में ही फांसी के फंदे तक पहुंचाने में हमारे तत्कालीन बुजुर्ग नेताओं की ही उदासीनता जुम्मेदार थी। इन बेशकीमती हीरों को हमारे तत्कालीन नेता चाहते तो मौत के मुंह से बचा सकते थे।
आजादी के बाद भी भारतीय जनमानस के ये नायक इतिहास की सरकारी पुस्तकों में आतंकवादी लिखे गये और सत्ता के भूखे नेता आज भी देश भक्त बने बैठे हैं। आजादी के बाद सभी दलों के नेताओं ने नवयुवकों को झंडे और चटाईयां बिछाने तक सीमित रखा। उन्हें दबाया जाता रहा। यही कारण है पेशेवर राजनीति मजबूत होती गयी और जातिवाद तथा परिवारवाद ने उसका स्थान ले लिया।
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इस कुव्यवस्था, राजनैतिक कदाचार ने मौजूदा शिक्षित युवा पीढ़ी को झकझोरना शुरु किया है। इसी की प्रतिक्रिया ने अरविन्द केजरीवाल, हार्दिक पटेल और अब कन्हैया कुमार को उत्पन्न किया है।
इन त्रिदेव को भारतीय राजनीति के ब्रह्मा, विष्णु और महेश का अवतार कहा जाये तो कुछ भी अतिरंजित नहीं होगा। यह मानने में कुछ भी सन्देह नहीं कि देश में एक नवीन तथा राष्ट्रवादी चिन्तन की राजनीति का उदय हो गया है।