भले ही नगर निकाय चुनाव होने में अभी एक साल से अधिक समय हो लेकिन यहां पालिकाध्यक्ष बनने के इच्छुक नेता चुनावी तैयारी का खाका खींचकर भूमिका बनाने में लग गये हैं। नगर पंचायत से पालिका परिषद बने गजरौला का पहला पालिकाध्यक्ष बनने का सपना देखने वालों की सूची लंबी है। इस बार आरक्षण जारी होने पर गजरौला किस श्रेणी में रखा जायेगा, यह सरकार के रुख पर निर्भर करेगा। फिर भी अधिकांश लोगों का मानना है कि यहां अभी पिछड़ा वर्ग को आरक्षण लाभ नहीं मिला। इसलिए पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित होने की संभावना ही अधिक है। इस वर्ग से संभावित उम्मीदवारों की थोड़ी चर्चा करना हम आवश्यक समझते हैं।
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पूर्व जिला पंचायत सदस्य तथा मौजूदा बीडीसी सदस्य और बसपा नेता चौ. वीरेन्द्र सिंह मूलरुप से गांव भारापुर निवासी हैं। वे सामान्य या बीसी सीट होने पर पालिकाध्यक्ष का अगले साल चुनाव लड़ेंगे। उनकी जोरदार तैयारी रहेगी तथा बसपा से उन्हें अपनी उम्मीदवारी पर पूरा भरोसा है। उनकी बेदाग छवि तथा सभी वर्गों से बेहतर संबंध होना, इस पद पर पहुंचाने में मददगार हो सकते हैं। उनका दावा है कि वे नगर के चहुंमुखी विकास तथा जनसुविधाओं पर पूरा ध्यान देंगे।
भाजपा नेता, नपा सभासद, अंकित फोटो लैब स्वामी और प्रोपर्टी डीलर चौ. सुरेन्द्र सिंह औलख भी आगामी नपा चुनाव में अपनी किस्मत आजमायेंगे। पिछले चुनाव में भी उनकी तैयारी थी लेकिन सीट एससी होने से वे चुनाव नहीं लड़ पाये। इस बार सामान्य अथवा ओबीसी जो भी हो, वे चुनाव लड़ेंगे। उन्हें पार्टी से पूरी उम्मीद है कि उन्हें मैदान में उतारेगी। औलख भी मृदुभाषी और व्यावाहारिक हैं। वे नगर के विकास का दावा करते हैं। वे आगामी जनवरी से तेजी से तैयारी में जुटेंगे।
चौ. मूलचंद आर्य बसपा के पुराने कार्यकर्ता तथा वरिष्ठ नेता हैं। उनकी इच्छा है कि गजरौला का चौतरफा विकास हो, नगर में बसे लोगों के साथ ही यहां से गुजरने वालों को यहां से गुजरते समय सुखद अहसास हो। उनका कहना है कि यह तभी हो सकता है जबकि नगर का मुखिया एक सुलझा हुआ तथा ऐसा व्यक्ति हो जो यहां की बुनियादी समस्याओं को गहराई तक समझता हो। उन्हें लंबा तजुर्बा है तथा नगर विकास की उनके पास विशाल योजना है, जनता उन्हें मौका दे तो वे गजरौला को चमन बना देंगे।
उच्च शिक्षित भाजपा की युवा नेत्री पायल चौधरी भी आगामी पालिकाध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने की प्रबल इच्छा रखती हैं। वे चाहती हैं कि पार्टी उन्हें मैदान में उतारे। वे अपनी युवा टीम के साथ महिलाओं के हितों और नगर को साफ-स्वच्छ तथा प्रदूषण रहित बनाने का प्रयास करेंगी। वे चाहती हैं कि इस बार गजरौला की बागडोर पढ़ी-लिखी युवा महिला को मिले। अभी तक यहां से पुरुष ही चेयरमेन बने हैं। कम से कम एक बार तो महिलाओं को भी यह हक मिलना ही चाहिए।
उमर फारुख सैफी या तो स्वयं मैदान में आयेंगे अथवा वे अपने परिवार के किसी सदस्य को अध्यक्ष पद के दावेदार के लिए आगे करेंगे। सैफी सपा में पुराने नेता हैं। उन्हें सपा से उम्मीदवारी की उम्मीद है। वे चुनावी गणित को यहां जातीय तथा पार्टीगत दोनों ही तरह से अपने पक्ष में मान रहे हैं। वैसे सभी वर्गों में उनकी अच्छी जान पहचान है। जिसे वे अपने लिए बहुत मजबूत कारक मानते हैं। वे गजरौला के चहुंमुखी विकास का दावा कर रहे हैं।
पी.के. इंजीनियरिंग कारखाने के मालिक साबिर अली को लोग बनिया कहते हैं। वास्तव में वे बहुत शांतिप्रिय, वाद-विवाद से दूर तथा लोगों के बीच घुलमिलकर रहने वाले खुशमिजाज व्यक्ति हैं। वे नगर पंचायत के सभासद रह चुके हैं। सैकड़ों कमजोर तबके के लोगों को प्रशिक्षित कर वे अपने कारखाने में काम दे चुके। इनसे अधिक लोग परोक्ष रुप से रोजगार उनसे हासिल कर रहे हैं। उनका इरादा है कि यदि पालिकाध्यक्ष का पद उन्हें मिल जाये तो वे यहां के नवयुवकों को रोजगार के लिए बाहर नहीं जाने देंगे।
जाफर मलिक एक ऐसा नाम हैं, जिनसे सभी परिचित हैं। वे एक जबरदस्त वक्ता हैं तथा गांवों से लेकर शहर तक चुनाव लड़ने की शक्ति रखते हैं। उनके जैसा साहसी नेता कम ही दिखायी देता है। वे नगर पंचायत सदस्य स्वयं तो नहीं बन सके लेकिन अपनी पत्नि को जरुर बनवा दिया। पीछे जिला पंचायत का चुनाव भी लड़े। जिस वार्ड से वे लड़े वहां से 25 लोग खड़े थे। उनका नाम हारने वाले 24 लोगों में था। पालिकाध्यक्ष चुनाव की व्यूह रचना वे अभी से कर रहे हैं। वे पसमांदा मुस्लिमों तथा दलित वोट बैंक, जो मिलकर यहां सबसे बड़ो वोट बैंक है, पर अपना दावा कर रहे हैं। जीते तो दोनों तबकों की कायाकलपट करने का वे वादा करते हैं।