गन्ना किसानों को छल रही दोनों सरकारें, अगले सीजन के लिए भी पुराना भाव घोषित

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चीनी का बाजार भाव 3800 रुपये कुंटल तक पहुंच गया है। नवम्बर-दिसम्बर 2015 में यह भाव ढाई हजार के आसपास था। उसी के आधार पर गन्ने का भाव किसानों के लिए तय किया गया था। यह भी तय हुआ थ कि मिल बंद होने के सप्ताह बाद तक सारा भुगतान हो जायेगा। सरकार ने चीनी मिलों को करोड़ों रुपये बिना ब्याज के गन्ना भुगतान के बहाने दिये। उन्हें कई तरह की रियायतें और भी दी गयीं। अभी चीनी के भाव और ऊपर जाने की संभावना है। ऐसे में मिल मालामाल होते जा रहे हैं। खत्म सीजन का भुगतान भी किसानों को अभी तक नहीं मिला।

मिल मालिकों और हमारी सरकारों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार का पता होता है। पहले ही चरचायें थीं कि इस साल दुनियाभर में चीनी स्टॉक और उत्पादन कम है। दूसरे देशों में नवम्बर में ही चीनी के भाव बढ़ने शुरु हो गये थे। मिल मालिकों को पता था कि विदेशों में चीनी महंगी होने से उसका निर्यात कर अपने स्टॉक का बोझ कम करने और अच्छी कमाई के अवसर हैं। फिर भी वे देश में सस्ती चीनी के भाव का रोना रोकर सस्ता और उधारा गन्ना खरीदने में सफल रहे। केन्द्र और राज्य दोनों सरकारों को यह सब पता था, वे चाहतीं तो तीन सौ रुपये अथवा उससे भी ऊपर गन्ना बिकवा सकती थीं। परंतु वे नहीं चाहती थीं कि किसानों को उनकी उपज का अच्छा मूल्य मिल सके।

कितनी मजेदार बात है कि गन्ना दस रुपये कुंटल महंगा होने से महंगायी बढ़ती है और उससे बनी चीनी डेढ़ हजार रुपये कुंटल महंगी होने से भी महंगायी नहीं बढ़ती। जब चीनी के मूल्य के आधार पर गन्ने का भाव दिया जाता है तो, चीनी का भाव बढ़ने पर गन्ने की कीमत भी अधिक दी जानी चाहिए।

किसान सोच रहे होंगे कि चीनी की महंगायी के कारण अगले साल गन्ने का भाव बढ़कर मिलेगा। ऐसा नहीं होगा, अगले साल के लिए केन्द्र ने गन्ना भाव नहीं बढ़ाया। उसने 230 रुपये प्रति कुंटल गन्ना मूल्य तय कर दिया है। चाहें चीनी 38सौ क्या पांच हजार भी हो जाये। किसानों से छल करने में दोनों सरकारें एक दूसरे से आगे हैं।

-गजरौला टाइम्स डॉट कॉम अमरोहा.