2012 के चुनाव से ठीक पूर्व रालोद छोड़कर सपा में आये विजयपाल सैनी भाषण कला के माहिर हैं। स्थानीय सभाओं में भी उनका भाषण राष्ट्रीय नेताओं की शैली का होता है। भाषण के जरिये वे सभा में मौजूद साधारण से लेकर अच्छे पढ़े-लिखे लोगों को भी बांध कर रखने की क्षमता रखते हैं। ऐसा व्यक्ति बेहद वाकपटु होता है। यही कारण था कि कभी बसपा और कभी रालोद में लुढ़कते-लुढ़कते जब सैनी सपा नेताओं के संपर्क में आये तो, उन्होंने अपने वाकचातुर्य और भाषण कला से सपा सुप्रीमो और सपा के शीर्ष नेताओं को प्रभावित किया था।
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जिले में सैनी बिरादरी का बड़ा वोट बैंक है जिसे मुट्ठी में कर सपा के खाते में डलवाने का भरोसा दिलाने में विजयपाल सैनी सफल रहे। दूसरी ओर सपा को अमरोहा जिले में एक सैनी बिरादरी का ऐसा चेहरा भी चाहिए था, जो बिरादरी में पहचान रखता हो।
जिले के सपा नेता जानते थे कि विजयपाल बसपा तथा रालोद से विधानसभा का चुनाव लड़ चुके। भले ही वे हार गये हों लेकिन उनकी पहचान पूरे जिले में है। साथ ही कई बड़े सैनी नेता भाजपा और बसपा से जुड़े हैं। उनको मुकाबले के लिए विजयपाल सैनी एक कारगर हथियार हो सकते हैं।
हमें ओर नहीं, तुम्हें ठौर नहीं की तर्ज पर विजयपाल तथा सपा दोनों की ही मजबूरी ने एक और दलबदल कराया और सैनी को सपा ने अपना जिला अध्यक्ष बना लिया। जबकि 2012 से पूर्व पराजय का दंश झेल चुकी सपा को संगठित कर मजबूती प्रदान करने वाले तत्कालीन जिलाध्यक्ष डा. जितेन्द्र यादव की सेवाओं को नजरअंदाज करते हुए उन्हें ससम्मान पदमुक्त किया गया।