देश में पानी को लेकर हाहाकार मचना शुरु है। वैसे तो देश के नौ राज्यों में जल संकट की स्थिति है लेकिन महाराष्ट्र में हालात बद से बदतर हो चुके हैं। एक खबर के मुताबिक मराठवाड़ा के 25 लाख किसान जल संकट से त्रस्त होकर गांवों से पलायन कर गये। ऐसे गांव बिल्कुल वीरान पड़े हैं। राज्य के तीन हजार गांवों में पीने के पानी टैंकरों के जरिये पहुंचाया जा रहा है। जो आवश्यकता से बहुत कम है। पीने के पानी का एक टैंकर सात हजार तक में बेचा जा रहा है। जबकि रसीद आठ सौ रुपयों की ही काटी जा रही है। अभी गर्मी का आगमन ही हुआ है, तेज गर्मी में क्या होगा, यह सोचकर ही सिर चकरा जाता है।
उधर केन्द्रीय जल आयोग ने अलर्ट जारी कर दिया है कि पानी की कमी का सबसे अधिक असर महाराष्ट्र के साथ उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु में होगा। देश के 91 प्रमुख जलाशयों में मात्र एक चौथाई जल शेष रह गया है। कम वर्षा के कारण इन जलाशयों में इस बार 39.651 अरब क्यूसेक पानी जमा हुआ था, जो गत वर्ष की तुलना में 31 फीसद कम था।
जलाशयों में पानी की कमी से केवल सिंचाई ही नहीं बल्कि बिजली उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है। देश के सबसे ऊंचे टिहरी बांध से प्रतिवर्ष औसतन 38 करोड़ 60 लाख बिजली का उत्पादन हो रहा था जो घटकर इस साल लगभग आधा यानि 20 करोड़ 50 लाख यूनिट रह गया।
महाराष्ट्र के मराठवाड़ा, उत्तर महाराष्ट्र तथा विदर्भ के चौदह जिलों में अकाल से भी बदतर हालात हैं। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ेगी हालात बद से बदतर होते जायेंगे। कई जलाशयों पर पहरा लगा दिया है। लातूर तथा परभणी जिलों में पानी की किल्लत से मचे हाहाकार के कारण धारा 144 लागू कर दी लेकिन लोगों को पीने का पानी तक मुहैया कराने में किसी को दिलचस्पी नहीं।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सूखे की मार से बेहाल 3228 किसान एक साल में आत्महत्या कर चुके। यह किसानों की खुदकुशी का सबसे बड़ा आंकड़ा है।
विदर्भ में अकोला जिले की पातूरी तहसील, मराठवाड़ा का लातूर जिला और उस्मानाबाद का कलम्ब तालुका ऐसे इलाके हैं जहां के अधिकांश लोगों को पीने तक के पानी के लाले पड़ गये हैं। परंतु सरकार या सरकारी अफसर चैन की नींद सोये हैं। जहां पीने तक को लोगों के पास पानी नहीं वहां पशु-पक्षियों और फसलों का क्या हाल होगा?
सरकार आइपीएल तथा दूसरे इसी तरह के आयोजनों और मौज मस्ती में लगी है। सबकुछ जानते हुए भी वह कोई ध्यान नहीं दे रही। हाइकोर्ट द्वारा लताड़ लगाने से रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने रेलमार्ग से कुछ टैंकर पानी के प्रबंध का भरोसा दिया है लेकिन उसपर जब तक अमल होगा तबतक आत्महत्याओं तथा मौतों का सिलसिला लंबा चलता जायेगा।
केन्द्र और राज्य में एक ही दल की सरकार होने के बावजूद महाराष्ट्र के गांव और किसान सबसे बड़े संकट में हैं। जबकि प्रधानमंत्री और दूसरे बड़े नेता असम और बंगाल के चुनाव प्रचार में वहां की सरकारों को कोसते फिर रहे हैं। अमित शाह 25 साल तक पूरे देश में राज करने के दावे कर रहे हैं और देश में लोग प्यास से मर रहे हैं।
महाराष्ट्र सरकार सारा ध्यान मुंबई तथा वहां के अमीर घरानों की सुविधाओं पर केन्द्रित किये है। उससे पहली सरकारें भी यही करती रही हैं। विदर्भ और मराठवाड़ा में बार्बादी का मंजर जारी है। इस सवाल का जबाव कोई नहीं दे रहा कि अभी तो गर्मी शुरु हुई है, आगे कैसे होगा?