तीन हमलों में भी बच गया फलों का बादशाह

आम-की-फसल

इस बार आम की फसल पर तीसरा बड़ा मौसमी हमला हुआ है। जिसमें आम की करोड़ों रुपयों की फसल बरबाद हो गयी। आंधी के साथ हुई बरसात ने मौसम की तपन कम करके आम उत्पादकों के घावों पर थोड़ा मरहम जरुर लगाया है। यदि आगे को दो सप्ताह तक आंधी नहीं आयी तो बाग वालों को राहत मिलेगी।

इस बार बौर रिकॉर्डतोड़ आया था। साथ ही साफ मौसम के कारण आम को बीमारी भी नहीं लगी। पेड़ों पर पत्तों से भी अधिक आम लगा था। यह इतना आम था, जिसे पेड़ संभाल नहीं पाते। मई माह में तीन बार आंधी ने आकर साठ से सत्तर फीसदी आम को पलभर में धराशायी कर दिया। इसके बाद भी आम के बागों पर काफी आम बचा है। जो अब तेजी से बढ़ रहा है।

आम-बरबाद-हुआ

मंडी धनौरा, गजरौला तथा हसनपुर में बागों का विस्तृत इलाका है। देखा जाये तो उत्तर प्रदेश का अमरोहा जिला देश का अग्रणी आम उत्पादक जिला है। मोटे तौर पर देखा जाये पचास करोड़ से भी अधिक का आम बरबाद हुआ है। यदि इस आम को पन्द्रह जून के बाद तोड़ा जाता तो इसका वजन अब से चार, पांच गुणा अधिक होता।

बछरायूं, हसनपुर और अमरोहा में हजारों ठेकेदार हैं जो फूल आने तक बाग वालों से ठेका कर लेते हैं। आमतौर पर ही फसलों का ठेका होता है। इस बार काफी महंगे ठेके हुए थे। सौ बीघा का बाग औसतन आठ से दस लाख रुपये तक एक फसल के लिए हुआ था।

ठेकेदार कहते हैं कि यदि ऊपर वाला अब भी मेहर कर दे और आंधी न भेजे तो अभी भी इतना आम है कि अच्छा पैसा मिल जायेगा। इस बार जितना आम आया है, इतना आम दशकों में देखने को नहीं मिला।

हर गांव में बाग हैं

मंडी धनौरा और गजरौला ऐसे विकास खंड हैं जिसके प्रत्येक गांव में हजारों बीघा आम हैं। कई गांव तो ऐसे हैं जहां सभी किसानों ने आम के बाग लगाये हैं तथा इस बार नये बाग लगने का सिलसिला तेज होगा। गन्ना, धान और गेहूं की मुख्य फसलों में लागत के सापेक्ष आमदनी न होना इसका बड़ा कारण है। खाद और बीज महंगे होना दूसरा बड़ा कारण है। छोटे किसानों के पास कृषि संसाधनों का अभाव उन्हें आम की खेती की ओर आकर्षित कर रहा है।

अमरुद-की-फसल

अमरुद का रकबा भी बढ़ रहा है

आम के साथ अमरुद और आड़ू के बाग भी लगने शुरु हो गये हैं। सिहाली जागीर में बड़े पैमाने पर अमरुद के बाग लगे हैं तथा देखा-दाखी जिले भर में अमरुद के बागों की ओर किसान आकर्षित हो रहे हैं।

अमरुद की फसल जल्दी आनी शुरु हो जाती है। दो वर्ष का पेड़ फल देने लगता है। वर्ष में दो बार फसल आती है। कलम लगाकर तैयार करने से अच्छी नस्ल का अमरुद उत्पन्न किया जा रहा है। जिसका मूल्य कई बार आम से भी अधिक मिलता है।

बाजार में अमरुद के फल के विभिन्न स्वादिष्ट पेय आदि उपलब्ध होेने से भी अमरुद की मांग और बाजार भाव तेजी से बढ़े हैं। इसी तरह के कई कारण किसानों को अमरुद की खेती के प्रति आकर्षित कर रहे हैं।

सिहाली-जागीर-और-बछरायूं-नर्सरी

पौधशाला की संख्या भी बढ़ रही है

आम और अमरुद के बाग लगाने का सिलसिला बढ़ने से क्षेत्र के सिहाली जागीर और बछरायूं में नर्सरी का धंधा भी जोर पकड़ता जा रहा है। इससे यहां कई सौ तरह के फल, फूल और सौन्दर्यशील पौधे उगाये जा रहे हैं। कई लोगों ने पौधशालाओं को विशाल क्षेत्र में विस्तृत कर उद्योगों की तर्ज पर व्यवसाय शुरु कर दिया है। इस क्षेत्र में ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने अपने द्वारा तैयार पौधे देश के विभिन्न शहरों में भी भेजने शुरु कर दिये हैं।

यहां उत्पन्न पौधे दिल्ली जैसे शहरों में वितरण केन्द्र स्थापित कर विदेशों तक भेजे जा रहे हैं। हालांकि इस व्यवसाय में लोगों के सामने कई तरह की दिक्कते भी हैं, लेकिन जिसकी जैसी क्षमता है वह उसके हिसाब से स्थानीय, प्रांतीय अथवा अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक कारोबार करने में सफलता हासिल कर रहा है।

नेशनल हाइवे के जिले के मध्य से होकर गुजरने के कारण उसके आसपास पौधे प्रदर्शन तथा वितरण के लिए रखे गये हैं।

-रिपोर्ट और फोटो : हरमिंदर सिंह.