रालोद मुखिया चौ. अजीत सिंह अपनी गिरती राजनैतिक ताकत से चिंतित हैं। हालत इतनी बदतर हो चुकी उनके सामने राजनैतिक अस्तित्व बचाने का सवाल खड़ा हो गया है। वे कांग्रेस या भाजपा में से किसी के साथ गठबंधन कर उत्तर प्रदेश में अपनी सियासी जमीन को मजबूत करना चाहते थे। भाजपा रालोद को समाप्त कर उसे भाजपा में विलीन करना चाहती थी। सोनिया गांधी उनके भाजपा की ओर जाने के प्रयास से नाराज हो गयीं और उन्होंने भी अंगूठा दिखा दिया। बसपा अथवा सपा रालोद से दूर ही रहना चाहती है। अब चौधरी के पास छोटे-छोटे दलों से गठबंधन अथवा अकेले ही चुनावी मैदान में उतरने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं।
पूर्व प्रधानमंत्री चौ. चरण सिंह द्वारा तैयार की किसान, गरीब और गांव की सियासी जमीन को वे उर्वरा बनाये रखने में सफल नहीं हो सके। जबकि वे चरण सिंह के बेटे हैं। दूसरी ओर सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव यह सिद्ध करने में सफल रहे कि चौ. चरण सिंह की सियासी विरासत के वे ही असली वारिस हैं। यही कारण रहा कि उत्तर प्रदेश का किसान, पिछड़ा और अल्पसंख्यक मतदाता, जो चौधरी चरण सिंह के नाम पर वोट करता था उसमें से अधिकांश मतदाता मुलायम सिंह यादव अपने पाले में करने में सफल रहे।
पूर्व प्रधानमंत्री चौ. चरण सिंह द्वारा तैयार की किसान, गरीब और गांव की सियासी जमीन को चौ. अजीत सिंह उर्वरा बनाये रखने में सफल नहीं हो सके.
ऐसे में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिकांश जाट और कुछ पिछड़े वर्ग, जिनमें मुस्लिम मतदाताओं की भी खासी तादाद थी फिर भी छोटे चौधरी के साथ लगे रहे। पूर्वी उत्तर प्रदेश से रालोद धीरे-धीरे साफ हो गया। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उसका बिल्कुल ही सफाया हो गया। चौधरी अपनी तथा अपने बेटे की सीट भी नहीं बचा पाये।
1979 के लोकसभा चुनावों का स्मरण करें तो उस चुनाव में अटल बिहारी वाजयेपी समेत कांग्रेस के विपक्ष के सभी दिग्गज चुनाव हार गये थे, लेकिन चौधरी चरण सिंह ही बड़े सियासी नेताओं में ऐसे थे जो अपनी सीट बचाने में सफल रहे थे।
सारी व्यथाओं को भूल चौधरी को अकेले दम पर चुनावी मैदान में उतरना चाहिए। उन्हें हाइकोर्ट की बेंच पश्चिम में लाने तथा किसानों की समस्याओं के लिए भाकियू जैसे किसान संगठनों को एकजुट कर संघर्ष करना चाहिए। प्रदेश विभाजन के मुद्दे को बार-बार उठाना चाहिए। रालोद इन मुद्दों को चुनावी मुद्दा बनाने के बजाय हकीकत में तब्दीली के लिए तबतक आगे बढ़ता रहे जबतक ये काम हो नहीं जाते। रालोद इसी राह पर चलकर अपनी जड़ें मजबूत कर सकता है। इसके अलावा कोई मार्ग नहीं।