किसानों तथा व्यापारियों को अनाज खरीदने बेचने में एक ही स्थान पर सुविधा मुहैया कराने के नाम पर स्थापित उपमंडी स्थल वांछित परिणाम देने में पूरी तरह विफल है। विभागीय कर्मचारियों की लापरवाही तथा व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण यहां सबकुछ अस्तव्यस्त है। मंडी निरीक्षक की भूमिका इसमें सर्वाधिक विवादित लगती है। हसनपुर के मंडी सचिव भी इधर खास ध्यान नहीं दे रहे। यहां किसान और आढ़ती दोनों ही सरकारी अव्यवस्था से परेशान हैं। सफाई के अभाव में उपमंडी स्थल 'नर्कस्थल’ बनकर रह गया है। लोगों को शौच व पेशाब के लिए मंडी में ही दुकानों के साथ जल निकासी के नाले आदि का उपयोग करना पड़ता है, जिससे यहां गंदगी बढ़ रही है। शौचालयों को गोदाम बनाकर उनमें ताले डाल दिये हैं।
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लगभग डेढ़ दशक पूर्व पेयजल व्यवस्था के लिए बनाया गया ओवर हैड टैंक अभी तक चालू नहीं किया गया। यहां स्थापित ट्यूबवैल को भी स्टोर रुम या गोदाम की तरह प्रयोग किया जा रहा है। ट्यूब वैल और टैंक चालू न होने के कारण पीने के पानी के लिए किसान, व्यापारी, कर्मचारी और आढ़ती हैंड पंपों का इस्तेमाल करने को मजबूर हैं।
गंदगी का साम्राज्य है
मंडी परिसर में चाहरदीवरी के अंदर तथा दुकानों से पीछे उत्तर और दक्षिण में जल निकासी के नाले हैं। जहां लोग शौच और पेशाब करते हैं। यहां बहुत दूर तक बदबू और मक्खी, मच्छरों के कारण नारकीय हालात हैं। प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान को ठेंगा दिखाने में यह मंडी उपस्थल नंबर वन माना जाना चाहिए। सुबह को सब्जी और फल क्रय-विक्रय के दौरान और भी बुरा हाल हो जाता है। पूरे उपमंडी स्थल में जहां भी खाली जगह है, वहीं गंदगी और कूड़ा कचरा पड़ा है। जब मंडी निरीक्षक से इस बारे में पूछा गया तो वे बहाना बनाकर वहां से गायब हो गये।मंडी शुल्क की चोरी आम बात है
यहां स्थापित कई मिनी आटा मिल, जो आटा चक्की के नाम पर लगी हैं, लेकिन स्वनिर्मित ब्रांड के आटे के बड़े कारोबार कर रहे हैं। वे मंडी से बाहर ही अनाज, धान और तिलहन आदि खरीदकर आटा, तेल और चावल निकालकर बड़ा व्यापार करने में संलग्न हैं।मंडी निरीक्षक की छत्रछाया में वे मंडी के बजाय अपने कार्यस्थल पर बिना मंडी शुल्क चुकाये लाखों करोड़ों का माल क्रय-विक्रय कर रहे हैं। औपचारिकतावश कभी-कभार एक-दो रसीद मंडी शुल्क की कटवाते भी हैं।