अन्न उत्पादन से खिन्न किसान बागों की ओर उन्मुख

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बढ़ती लागत, गिरता उत्पादन तथा उचित भाव न मिलने के कारण अमरोहा जिले के साथ ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान अनाज, दलहनों तथा दूसरी इसी तरह की फसलें कम करके आम के बागों की ओर पिछले दो दशकों से आकर्षित होते जा रहे हैं। हालांकि अमरुद के भी कुछ बागों की ओर किसानों का ध्यान जाना शुरु हुआ है लेकिन अभी यह कम है।

हसनपुर से गजरौला होते हुए आप मंडी धनौरा तक के इस तीस किलोमीटर के सड़क मार्ग की यात्रा पर कभी निकलें तो सड़क के दोनों ओर आम के बागों का सिलसिला थमने का नाम नहीं लेगा।

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केवल इस प्रान्तीय राजमार्ग के निकट ही यह हालत नहीं है, बल्कि इस सड़क के अर्द्धचन्द्राकार उत्तर पूर्वी क्षेत्र के लगभग सभी गांवों की कृषि भूमि के एक चौथाई क्षेत्रफल पर आम के बाग लगे हैं। ये बाग सात-आठ वर्षों में तैयार होकर एकमुश्त आय के स्थायी साधन बन जाते हैं। जबकि इस बीच गेहूं और उसके जैसी दूरी फसलें भी ली जा सकती हैं।

कृषि उपज के बजाय बागवानी लाभकारी और सुरक्षित रोजगार होता जाने से ऐसा हुआ है। बाग को लगभग तीन-चार माह पानी की जरुरत पड़ती है, जबकि दूसरी फसलों की बारहों माह सिंचाई की आवश्यकता होती है।

कृषि फसलें छोड़ बागों की ओर उन्मुख होने का यह भी एक कारण है। फसल ठेके पर देकर किसान इससे भी छुटकारा पा लेता है। सिंचाई, निराई-गुड़ाई, खाद-पानी आदि सारा काम ठेकेदार संभालते हैं। खाने के आम, खर्चे को दाम, आराम से मिलते रहते हैं।

-गजरौला टाइम्स डॉट कॉम गजरौला.