देश के दो बड़े सत्ताधारी राजनीतिक दलों के नेता और उनके समर्थक सरकारी खजाने के धन को अपने-अपने प्रचार में दोनों हाथों से लुटाने की होड़ में शामिल हो गये हैं। यह धन बरबादी देश के सबसे अधिक आबादी वाले सूबे उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए किया जा रहा है। 2012 में स्पष्ट बहुमत के बलपर उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा को पछाड़कर सत्ता में लौटी थी, वहीं 2014 में केन्द्र में यूपीए सरकार को पराजित कर भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार विशाल बहुमत से सत्तासीन हुई। अगले साल के विधानसभा चुनावों में वैसे तो इन दोनों दलों तथा बसपा में त्रिकोणात्मक मुकाबला होने वाला है, लेकिन प्रचार अभियान में भाजपा और सपा में बराबर की टक्कर है। दोनों दल जनता के पैसे से अपना-अपना प्रचार करने में एक-दूसरे को मात देने की कोशिश में जुट गये हैं। यदि यह धन जनहितैषी कार्यों में ईमानदारी से खर्च किया गया होता तो सूबे की तकदीर और तस्वीर बदल गयी होती।
भाजपा और सपा जनता के पैसे से अपना-अपना प्रचार करने में एक-दूसरे को मात देने की कोशिश में जुट गये हैं.
चाहें प्रिंट मीडिया हो या इलैक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के विज्ञापन बार-बार दिखाये जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के तमाम दैनिक समाचार पत्रों के सारे संस्करण इन दोनों नेताओं द्वारा कागजों और हवा में चलायी जाने वाली योजनाओं के विज्ञापनों से भरे हैं। इन विज्ञापनों में प्रकाशित सामग्री से ऐसा लगता है कि दोनों नेताओं ने उत्तर प्रदेश को स्वर्ग बना दिया है। गरीब अमीर बन गये हैं। महिलाओं, दलितों और अल्पसंख्यकों के लिए रामराज्य लौट आया है। गांव-गांव, गली-गली सपा के चार सालों और भाजपा के दो सालों में खुशहाली से सराबोर हैं।
बेरोजगारी खत्म हो चुकी, शिक्षा और रोजगार ने नवयुवकों की जिंदगी ही बदल दी। किसानों के खेतों में बिना खर्च किये ही फसलें लहलहा रही हैं। मोदी जी लागत से दो गुना दाम किसानों को मुहैया करा रहे हैं। अखिलेश बिना पानी ही नहरों की आबपाशी माफ कर किसानों की किस्मत बदल चुके। कुर्सी और सत्ता का नशा ऐसा ही होता है। अपने घर आनंद है तो पूरा संसार आनंदमय दिखायी देने लगता है।
कहावत है अपनी थाली भरी हो तो दूसरों की खाली थाली में भी पकवान नजर आते हैं.
जिन चैनलों और अखबारों को प्रतिदिन विज्ञापनों के बहाने करोड़ों रुपये सरकारों के खजाने से जा रहे हैं। उन चैनलों और अखबारों के मालिकों और लेखकों, पत्रकारों और अखबारों को सरकार की उपलब्धियां ही उपलब्धियां दिखाई दे रही हैं। उनपर धन लुटाने वाली सरकारें भला उन्हें बुरी क्यों लगेंगी? वे तो चाहते हैं ऐसी सरकारें हमेशा बनी रहीं। यही कारण है कि अधिकांश चैनलों और समाचार पत्रों के सम्पादकीय और विशेष लेख भारत को आर्थिक दौड़ में सबसे आगे कहते नहीं थक रहे। कहावत है अपनी थाली भरी हो तो दूसरों की खाली थाली में भी पकवान नजर आते हैं।
दो वर्षों से सूबे की जनता मोदी के मन की बात सुनते-सुनते इतना परेशान हो चुकी कि अब वह माफ करने का इरादा नहीं रखती.
उत्तर प्रदेश की जनता, विशेषकर देहात का निवासी आज आर्थिक रुप से टूट चुका है। उसे चुनाव के दौरान नरेन्द्र मोदी द्वारा दिखाये सपने टूट चुके। वह गहरे सदमे में है। सूबे की सपा सरकार से वह इतना खफा था कि उसने मोदी पर भरोसा कर सपा का लोकसभा चुनाव में सपूड़ा ही साफ कर दिया। दो वर्षों से सूबे की जनता मोदी के मन की बात सुनते-सुनते इतना परेशान हो चुकी कि अब वह माफ करने का इरादा नहीं रखती। उसपर जो गुजर रही है, वह स्वयं जानती है। उसे न्याय नहीं मिला, वह कर्ज से दब गयी। किसानों की फसलों का मूल्य नहीं मिला। उसकी जेब खाली है। बेरोजगारी बढ़ी है। जिसका कोई समाधान दोनों में से किसी सरकार ने नहीं किया।
झूठे दावे और झूठे वादे करके फिर से वोट हथियाने के लिए जोर आजमाइश की जाने वाली है। नये-नये हथकंडे अपनाने के उपक्रम शुरु हो चुके। जनता का पैसा उड़ाकर जो प्रचार किया जा रहा है वह इसी का एक हिस्सा है। आम आदमी मजे में है या अभावों के दर्द में यह तो वही जानता है। प्रचार के हथकंडे जमीनी हकीकत के आगे कुंद पड़ जायेंगे। चुनाव आने दो गांव, गरीब और किसान अपने मन की बात कहने को तैयार बैठे हैं।