सरकारी तौल पर गेहूं नहीं पहुंच रहा

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किसानों के जरिये गेहूं खरीद न हो पाने से चिंतित प्रशासनिक अमले ने आढ़तियों से गेहूं खरीदकर लक्ष्य पूरा करने का मन बना लिया है। यह जानकारी जिले में स्थित मंडी स्थलों के आढ़तियों ने दी है। उनपर मंडी सचिव सरकारी रेट पर गेहूं देने का दबाव बना रहे हैं। पहले ही मंडियों में गेहूं की आवक नाम मात्र की होने के कारण मंडी प्रशासन और आढ़ती परेशान हैं।

गौरतलब है कि इस बार मई का पहला सप्ताह बीतने के बावजूद सरकारी तौल पर वांछित गेहूं नहीं आया। इसका मूल कारण गेहूं का कम उत्पादन होना और गांव में ही मंडी के भाव पर नकद में गेहूं का बिकना है। कम क्षेत्र के साथ ही इस बार प्रति एकड़ पैदावार भी पिछले वर्षों से कम हुई है। कहीं-कहीं तो एक कुंटल बीघा भी उत्पादन नहीं हुआ।

आढ़ती और दूसरे व्यापारी गांव-गांव गेहूं खरीदते घूम रहे हैं और सरकारी मूल्य के बराबर नकद भुगतान कर रहे हैं। जबकि सरकारी खरीद केन्द्रों पर गेहूं की क्वालिटी और पल्लेदारों तथा मंडी का खर्च देने, मंडी तक ले जाने के व्यय के बावजूद उधारा गेहूं बिकता है। भुगतान के लिए बाद में बैंकों के चक्कर भी लगाने पड़ते हैं। इन सारी मुसीबतों से बचाव और अच्छी कीमत जब घर बैठे ही मिल रहा हो, तो सरकारी तौल पर गेहूं ले जाना कौन सी समझदारी है?

मंडियों में मौजूद आढ़तियों का कहना है कि उनपर मंडी सचिव और निरीक्षक गेहूं देने का दबाव बना रहे हैं। जबकि उनका कहना है कि वे खरीद भाव से कम पर गेहूं कैसे दें? वे चाहते हैं कि उन्हें कुछ कमीशन मिले तो वे गेहूं देने को तैयार हैं। जब गेहूं नहीं मिलेगा तो आढ़तियों को कमीशन देने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा। सरकार किसानों को ही बढ़ाकर भाव दे तो गेहूं की कमी नहीं।

-गजरौला टाइम्स डॉट कॉम अमरोहा.