सपा सरकार के सीनियर मंत्री मो. आजम खां ने एक बार दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम मौलाना बुखारी को नसीहत दी थी कि वे इमामत करें और राजनीति नेताओं को करने दें। कुछ लोगों को यह बात कड़वी लगी थी लेकिन यह बात बहुत ही निष्पक्ष और सटीक थी। वास्तव में इस देश की राजनीति में धर्मधिकारियों के हस्तक्षेप ने सुधार के बजाय हमेशा खेल बिगाड़ा है।
आज भाजपा और सपा में विकास को लेकर जो आपसी खींचतान या टकराव है, उसका मूल कारण दोनों में धार्मिक कर्मकांडियों का बढ़ता हस्तक्षेप है। सभी धर्मों के ऐसे धर्माधिकारी जो नेताओं से संबंध रखते हैं, सत्ता का स्वाद चखने और उसके सहारे मिलने वाली सुविधाओं और एशो आराम का लाभ उठाने के लिए विधायक, सांसद तथा मंत्री पद तक पाने की लालसा के गुलाम होते जा रहे हैं। दूसरों को सांसारिक मोह-माया के त्याग और भगवद् भक्ति में रमने का उपदेश देने वाले आधुनिक बाबा सांसारिक माया मोह का भोग करने वालों से भी आगे निकल गये।
अमरोहा जनपद से भी एक धर्माधिकारी को सपा ने किसी महकमे का चेयरमेन बना दिया। वे राज्यमंत्री के दर्जे में अपनी गणना कर आप तो मजे में हो गये लेकिन अपनी कारगुजारियों से उन्होंने सपा की राजनीति में भूचाल खड़ा कर दिया है।
हालात यह हो गये हैं कि विधानसभा में जिन चारों सीटों को सपा फिर से अपना मान कर चल रही थी, उनमें सपा में ही आंतरिक विभाजन के बीज शुरु हो गये।
इन मौलाना जावेद आब्दी या धर्माधिकारी की मेहरबानी से सपा के लोग ही अपने विधायक अशफाक खां से इस्तीफा मांग रहे हैं, उनके निष्कासन की मांग कर रहे हैं। खां के पुतले तक उनके क्षेत्र में खुलेआम जलाये जा रहे हैं। मौलाना तो बिना चुनाव के ही चेयरमेन बना दिये।
अशफाक खां को तो बड़ी जद्दोजहद और पैसा फूंकने के बाद विधायक की कुर्सी मिली थी। दूसरी बार उन्हें कुर्सी न मिले इसके लिए मौलाना ने काफी कुछ कर दिया। यही नहीं पार्टी में विभाजन का नुकसान यहां पूरे जनपद में हर सीट पर थोड़ा कम या ज्यादा सभी जगह होगा। जिले के सभी दलों में गुटबंदी है, लेकिन सपा में उसके समर्थक सबसे बड़े गुट में धड़ेबंदी होना सपा के लिए खतरे की घंटी से कम नहीं। सपा धर्माधिकारियों को किनारे रखती तो उसके सामने यह समस्या नहीं आती। भाजपा में धर्मध्वज वाहकों की लंबी कतार भी भाजपा के लिए सबसे बड़ा खतरा है। विरोधियों से बड़ी मुसीबत खड़ी करने में वे हमेशा तैयार रहते हैं।