हापुड़ जनपद के ब्रजघाट और अमरोहा जिले के तिगरीधाम गंगा तट पर दो ऐसे धार्मिक तीर्थस्थल हैं जहां हर माह कम से कम दो बार लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान करने तथा कई अन्य धार्मिक कर्मकांड करने के लिए आते हैं। बुध पूर्णिमा, गंगा दशहरा, महाशिवरात्रि आदि दर्जन भर से अधिक त्योहारों पर भी स्नानार्थियों की यहां भीड़ लगती रहती है।
राष्ट्रीय राजमार्ग ब्रजघाट के उसी स्थान से दिल्ली तथा लखनऊ को जोड़ता है जहां त्योहारों पर स्नान मेले लगते हैं। ऐसे मौकों पर अतिव्यस्ततम राजमार्ग के यातायात को सुचारु करना पुलिस और प्रशासन के लिए चुनौती से कम नहीं होता। बड़ा सवाल है क्या पुलिस प्रशासन इस चुनौती से ठीक तरह से निपटता है या हाथ पर हाथ धरे यात्रियों को रामभरोसे छोड़ देता है?
इस सवाल का जबाव पुलिस या प्रशासन के पास नहीं है। लोग जानते हैं कि नियमित चलने वाले यातायात का रुट बदलकर पुलिस प्रशासन हर बार अपने दायित्व का निर्वहन मान लेता है। इस बात से उसे कोई मतलब नहीं कि इससे यात्रियों को कितनी मुसीबत का सामना करना पड़ता है। साल में एक दो बार भी ऐसा होने से लोगों के साथ अन्याय है तथा इसे आयेदिन रुटीन में ले लेना तो जनता के साथ घोर अन्याय ही नहीं बल्कि जानबूझकर की गयी नाइंसाफी है।
यातायात सुचारु तथा सरल बनाये रखने के नाम पर ऐसे मौकों पर हापुड़ तथा अमरोहा जनपदों के बड़े अधिकारियों की बाकायदा बैठकें होती हैं। यह दिखाने का प्रयास होता है कि पुलिस और प्रशासन इसे लेकर वास्तव में बेहद संजीदा है। कोई ऐसा निदान आजतक नहीं किया जिससे रुट डायवर्ट किये बिना यातायात भी चलता रहे और गंगा स्नान भी सकुशल संपन्न हो जाये।
सरकार के पास पर्याप्त सुरक्षा बल है। सरकारी अधिकारियों तथा कर्मचारियों की विशाल फौज है। बड़े नेताओं की सभाओं तथा सुरक्षा के नाम पर तमाम व्यवस्थायें चाक चौबंद करने में सरकारी अमला नीचे से ऊपर तक जुट जाता है। इस आम जनता की सुरक्षा-व्यवस्था और सहूलियत के लिए यह सब क्यों नहीं किया जाता?
अधिकारी चाहें तो यह और भी आसानी से हो सकता है लेकिन वे इच्छाशक्ति ही नहीं रखते?