जगह-जगह झोलाछाप

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लोग दवा के बजाय दुआ पर भरोसा करने लगते हैं. तंत्र-मंत्र व हवाई इलाज करने वालों के चक्कर में पड़कर मर्ज के साथ मरीज से भी हाथ धो बैठते हैं.

शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में झोलाछाप डॉक्टरों की संख्या दिनप्रतिदिन बढ़ती जा रही है। सब कुछ जानते हुए भी चिकित्सा विभाग के आला अफसर इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहे बल्कि उन्हें ऐसे हथकन्डे अपनाने के गुर सिखा रहे हैं जिससे वे उनकी आड़ लेकर अपने विरुद्ध होने वाली कानूनी कार्रवाई से बच सकें। शहरों से दूर बसे ऐसे गांवों में जहां से शहर तक मरीज लाना आसान नहीं वहां इन डॉक्टरों का धंधा और अधिक ऊलजलूल रहा है। समाज में बढ़ रही बेरोजगारी तथा उच्च शिक्षा प्राप्त करने की क्षमता न होने के कारण यह धंधा तेजी से बढ़ रहा है।

झोलाछाप चिकित्सकों के कारण प्रतिवर्ष हजारों मरीज उचित इलाज के अभाव मेें मर जाते हैं तथा अनेक जीवन भर के विकलांग हो जाते हैं। इन्हें रोकने के लिए बार-बार की जाने वाली सरकारी घोषणायें तथा अदालती आदेशों के बावजूद इनकी संख्या कम होने के बजाय बढ़ती जा रही है।

प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि छोटे गांव से लेकर महानगरों तक में झोलाछाप अपने अड्डे जमाए बैठे हैं। इनमें इन्हें तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है। पहली श्रेणी में वे लोग हैं जो पढ़े लिखे बेरोजगार हैं तथा किसी चिकित्सक के पास रहकर गिनी-चुनी अंग्रेजी दवाईयों के नाम जानकर ग्रामांचलों व छोटे कस्बों में बैठ कर लोगों की सेहत सुधार रहे हैं। दूसरे वे लोग हैं जो हकीम और वैद्य के नाम से जाने जाते हैं। इनमें भी अधिकतर चिकित्सा के संबंध में नाममात्र की जानकारी रखते हैं और वैघ या हकीम का पंजीयन कराकर आयुर्वेदिक दवाइयों से लोगों का इलाज करते हैं। ज्यादातर यौन रोगों का उपचार करते हैं और पौरुष शक्ति बढ़ाने के दावे करते हैं। बांझ स्त्रियों को संतान प्राप्ति के नाम पर ठगते रहते हैं। तीसरे वे झोलाछाप हैं जो भूतप्रेत, तंंत्र-मंत्र तथा दवा और दुआ के सहारे अपने कारोबार जारी रखे हैं। ऐसे लोगों की संख्या शहरी क्षेत्रों में अधिक है। महिलायें एवं धर्ममीस लोग इनके शिकार होते हैं।

सुदूर ग्रामीण क्षेत्र जहां अच्छे चिकित्सक उपलब्ध नहीं है। वहां झोलाछाप डॉक्टरों को स्थापित होेने में आसानी रहती है। इसी कारण इनकी भारी तादाद ग्रामीण क्षेत्रों में है। गंगा के खादर क्षेत्र के गांवों में झोलाछाप चिकित्सक बेहिचक होकर इलाज करते हैं। यहां इनके पनपने की कई बजह हैं। यहां पूरा इलाका शिक्षा के नाम पर बहुत पिछड़ा है निर्धन है तथा शहरों से दूर हैं। शहर तक जाने को उचित मार्ग वाहन और समय की समस्या के कारण ये झोलाछाप चिकित्सक गांव वालों के लिए बहुत राहत का काम करते हैं। जब दर्द से परेशान व्यक्ति चंद क्षणों में आराम महसूस करता है तो वह शहर क्यों जाएगा? शहर जाने के लिए कच्चे व कीचड़ भरे मार्गों से अंधेरे में गुजरना कितना कठिन होगा तथा रात में चोरोेंं का खतरा अलग है। जब घर की बगल में डॉक्टर है फिर ऐसे खतरे मोल लेने की आवश्यकता? यह सोचकर ग्रामीण झोलाछाप के यहां जाना उचित समझते हैं।

खांसी, जुकाम, बुखार, उल्टी-दस्त तथा इसी प्रकार की बीमारियों में ऐसे लोग भी जो पढ़े लिखे हैं और उनके पास अच्छे डाक्टरों के समीप जाने के साधन उपलब्ध है, निकटवर्ती झोलाछाप से ही दवाई ले लेते हैं। आमतौर पर लोग यह नहीं जानते हैं कि झोलाछाप डॉक्टर से ली गयी दवाई एक बड़ा खतरा बन सकती हैं। बेहतर इलाज के बजाय लोग झोलाछाप चिकित्सक तक आसानी से पहुंचने को प्राथमिकता देते हैं। अनेक बार देखने में आया है कि मरीज की गंभीर अवस्था होेने के वावजूद झोलाछाप ठीक होने का आश्वासन देते रहते हैं। स्थिति काबू से बाहर होने का बहाना गढ़कर उसे दूर शहर ले जाने का निर्देश दे देते हैं। ऐसे में मरीज मार्ग में ही दम तोड़ देता है। लेकिन जो मरीज जीवित अवस्था में अच्छे चिकित्सक तक पहुंच जाते हैं उनकी स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी होती है कि योग्य से योग्य चिकित्सक लाख प्रयत्नों के वावजूद उन्हें यम के हाथों से मुक्त नहीं करा पाता। ऐसे में अपनी अकुशलता का ठीकरा ये झोलाछाप डाक्टर विशेष चिकित्सकों के सिर पर फोड़ने से बाज नहीं आते। धूतर्ता व चालाकी के बल पर मौत की सौदागरी का धंधा जारी रखते हैं।

शहरी क्षेत्रों में बसे अच्छे चिकित्सकों की फीस इतनी अधिक हो गयी है कि उसे वहन करना गरीब लोगों के बस की बात नहीं। ऐसे लोग दवा के बजाय दुआ पर भरोसा करने लगते हैं। तंत्र-मंत्र व हवाई इलाज करने वालों के चक्कर में पड़कर मर्ज के साथ मरीज से भी हाथ धो बैठते हैं।

-हरमिंदर सिंह.


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