2014 में केन्द्र में भाजपा सरकार गठित होने से पूर्व उमा भारती उत्तर प्रदेश के ब्रजघाट में कई बार गंगा तट पर आयीं। वे जब भी यहां आयीं, उन्होंने गंगा के शुद्धिकरण का राग अलापा और लोगों से इसके लिए केन्द्र में भाजपा की सरकार बनवाने की अपील की। साथ ही यह भी वायदा किया कि यदि उनकी सरकार बनी तो सौ दिनों में स्वच्छ अविरल गंगा बहती दिखेगी। भाजपा गठित हुई, ढाई साल होने को आये और यह विभाग भी उमा भारती के पास ही है, लेकिन गंगा का पानी स्वच्छ होने के बजाय पहले से भी अधिक प्रदूषित है।
गंगा की स्वच्छता का कार्य अभी तक शुरु भी नहीं हुआ। हां, इतना जरुर हो गया है कि गंगा तटवर्ती इलाकों में जहां सदियों से लाखों गरीब परिवार सब्जियां तथा तरबूज, खरबूजा उगाकर जीवन यापन कर रहे थे, उनपर पाबंदी लगाकर, उनका रोजगार छीन लिया गया है। गंगा साफ हो न हो, ऐसे लोगों का कारोबार साफ जरुर हो गया है।
उमा भारती ब्रजघाट के गंगा तट पर अनेक बार आ चुकी हैं और गंगा के जल्द साफ़ होने की बात भी की है.
बताया जा रहा है कि गंगा तटवर्ती इलाकों में हरियाली के लिए वृक्षारोपण किया जायेगा। यह काम तो सब्जी उत्पादक बिना सरकारी बजट के कर सकते थे। वे इसके साथ-साथ सब्जियां भी उगाते रहते। सब्जियों से बेहतर हरियाली कहां हो सकती है? सब्जी उत्पादक 'उजाड़ो नीति' से केवल किसानों का ही बुरा नहीं हुआ, बल्कि बाजार में हरी सब्जियों के भावों में जो उछाल आया है वह भी इसी कारण से है। उत्पादन की कमी और आबादी बढ़ते रहने के कारण भाव बढ़ रहे हैं। गंगा स्वच्छता के बेढंगे सिस्टम से किसान और उपभोक्ता दोनों ही घाटे में हैं।
जिस तरह से साध्वी उमा भारती गंगा स्वच्छता अभियान चला रही हैं, उससे गंगा सौ साल में भी साफ नहीं होने वाली। सरकारी खजाने का एक बड़ा भाग इसपर खर्च हो चुका और अभी नजाने कितना खर्च भविष्य में किया जाना है। लाखों किसानों तथा करोड़ों उपभोक्ताओं को इसका खामियाजा भुगतने के बावजूद गंगा मैली ही है।
-जी.एस. चाहल.
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