हमारा देश त्योहारों का देश है। यहां हर रोज कोई न कोई त्योहार होता है। किसी-किसी दिन तो कई-कई त्योहार भी आ जाते हैं। दीपावली या दिवाली इन सभी पर्वों में महत्पवूर्ण है। प्रकाश को ज्ञान तथा अंधेरे को अज्ञान का प्रतीक माना गया है। इस मान्यता में दुनिया के सभी धर्म एकमत हैं। प्रकाश के फैलने से अंधकार स्वतः विलुप्त हो जाता है। हम प्रतिवर्ष दिवाली पर इसी धारणा से दीप जलाते हैं। कामना करते हैं कि हमारे जीवन में कभी भी अंधकार न आये हमेशा उजाला रहे।
त्योहार खुशी और हर्षोल्लास के लिए भी होता है। इसके लिए हम इन मौकों पर मनपसंद पकवानों और व्यंजनों का आनंद लेते हैं। अपने सगे संबंधियों, मित्रों और शुभचिंतकों को भी शामिल करते हैं। हमारी सदियों पुरानी यह परंपरा समाज में आपसी प्रेम-सौहार्द और एकता को बनाये रखती आ रही है।
दीपावली में दीपमालिका के प्रचलन से तो सभी सहमत हैं, लेकिन इसके साथ आतिशबाजी का प्रचलन इस त्योहार के उजले पक्ष को स्याह बनाने का भी काम करता है। प्रतीक स्वरुप बहुत सीमित स्तर पर यह किया जाना तो स्वीकार्य हो सकता है लेकिन इसके प्रयोग में हमारा समाज जहां तक पहुंच चुका है वह कदापि स्वीकार्य नहीं किया जाना चाहिए।
आतिशबाजी पर्यावरण के लिए सबसे खतरनाक है। बारुद के जहरीले धुएं का प्रभाव वायुमंडल में लंबे समय तक रहता है। जिसके दुष्परिणाम हमें खतरनाक बीमारियों के रुप में भुगतने पड़ रहे हैं। दिल्ली, मुंबई, कलकत्ता जैसे घनी आबादी के शहरों में दिवाली की रात बारुद के बादलों से ढकी होती है। कई मोहल्लों में सांस लेना तक दूभर हो जाता है। पूरी रात धड़ाधड़ पटाखे और दूसरी आतिशबाजी इन जैसे शहरों के लिए काल रात्रि से कम नहीं।
मैंने पहली बार 2002 में दिवाली की रात गुरुद्वारा बंगला साहिब में गुजारी थी। पूरे क्षेत्र में पटाखों और आतिशबाजी के शोर और धुएं में सांस लेना तक मुश्किल था। मैं आठ साल वहां रहा लेकिन उसके बाद दिवाली पर कभी नहीं रुका।
केवल पर्यावरण ही नहीं बल्कि कई स्थानों पर आतिशबाजी कई खतरनाक और दुखद घटनाओं का कारण भी बनती है। जिससे हर्षोल्लास और खुशियों भरा यह पर्व हमारे अपनों को हमेशा के लिए दर्दभरी याद भर रह जाता है।
आइये आतिशबाजी से परहेज करें। दीपावली पर खुशियों के लिए अपने वतन की पवित्र मिट्टी से बने दीये जलायें। जिनसे हमारे देश के हर घर में खुशियों का उजाला फैले। सुख-समृद्धि हर घर में आये। आगामी दिवाली और भी खुशियां और उत्साह लेकर आये।
-जी.एस. चाहल.