कालाधन समाप्त करने के नाम पर पांच सौ और एक हजार के नोट बंद करने का सबसे अधिक नुक्सान किसानों तथा खेतिहर मजदूरों को हो रहा है। जिसका परोक्ष नुक्सान व्यापार और उद्योग पर पड़ रहा है। गन्ना किसानों पर इसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव पड़ा है। प्रधानमंत्री ने 50 दिन तंगी झेलने के बयान से स्पष्ट कर दिया है कि इस समस्या का निदान जल्दी नहीं होने वाला। ऐसा हुआ तो कृषि क्षेत्र की कमर टूट जायेगी और देश में खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो सकता है। सहकारी बैंकों, जिन्हें किसानों का बैंक माना जाता है, उनपर रिजर्व बैंक द्वारा पांच सौ और हजार के नोट बदलने पर पाबंदी लगाने से किसानों का संकट और बढ़ाया गया है। क्योंकि अधिकांश किसान, विशेषकर छोटे किसान अपना लेनदेन इन्हीं बैंकों से करते हैं। उनके क्रेडिट कार्ड भी इसी तरह के बैंकों ने अधिक बनाये हैं। रिजर्व बैंक के आदेश से सहकारी बैंकों पर निर्भर किसानों की समस्या बेहद जटिल हो गयी है।
पहले ही आर्थिक संकट से जूझ किसान नकद पैसे के लिए 150-200 रुपये कुंटल पर क्रेशरों में अपना गन्ना बेच रहे थे। मिलों से पर्ची जारी न होने तथा उधारा गन्ना, बिना तय मूल्य के बेचने की समस्याओं के कारण उन्हें ऐसा करने को बाध्य होना पड़ रहा था। नकदी संकट के कारण क्रेशर मालिक भी नकद भुगतान करने में असमर्थ हैं। इससे किसान वहां भी गन्ने नहीं डाल सकते। थोड़ा बहुत डाला भी तो क्रेशरों से पांच सौ के नोट मिलने पर उन्हें न तो बाजार में चलाया जा सकता है और सहकारी बैंकों ने लेना बंद कर दिया है। लिहाजा गन्ना ही डालना बंद करना पड़ा।
गन्ना न बिकने से गेहूं बोने के लिए न तो खेत खाली होंगे और न ही खाली खेतों में गेहूं बोने को बीज, खाद तथा सिंचाई की व्यवस्था हो पायेगी। ऐसे में सबसे अधिक उपयोगी खाद्यान्न को बोने का समय निकल जायेगा। लिहाजा गेहूं का रकबा घटेगा, जिसकी मार गरीबों और सरकारी खजाने तथा जीडीपी पर पड़ेगी।
किसानों की एक फसल में घाटा होने से उसके पूरे साल के बजट पर बुरा असर पड़ता है। लोग ठंड से बचाव के लिए रजाई, गद्दों और गर्म कपड़ों का इस समय इंतजाम करते हैं लेकिन सरकार ने जो संकट खड़ा कर दिया उससे किसान को ठंड से बचने का भी रास्ता नहीं मिल रहा।
विवाह शादी तथा बीमारों का इलाज कराना सबसे कठिन है तथा लोग मकान तथा दूसरी संपत्ति तक बेचने को मजबूर हैं लेकिन पुराने नोटों के बंद होने और नये उपलब्ध न होने से यह उपाय भी बेकार सिद्ध हो रहा है। सरकार ने लोगों की आवाज सुननी बंद कर दी है। तथा मीडिया और अपनी चाटुकार मंडली को सरकार की जय जयकार करने का काम सौंप दिया है। समस्या को हल करने के बजाय, बढ़ाने के उपाय किये जा रहे हैं।
-टाइम्स न्यूज़ गजरौला
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