दूसरी बिरादरियों से सीख लेते हुए आगामी विधानसभा चुनाव में जाटों को बहुत समझदारी अपनाने की जरुरत है। यदि हम लोग गंभीरता से आगे बढ़े तो अमरोहा जिले की नौगांवा सीट से जाट विधायक बन सकता है। यदि ऐसा नहीं किया तो पिछली बार की तरह एक भी विधायक बिरादरी का नहीं बन पायेगा।
यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस सीट से कई जाट बंधु मैदान में आना चाहते हैं। सबसे पहले बसपा ने एक जाट को उम्मीदवार घोषित कर यह संदेश दे दिया था कि पार्टी जिले में चार में से एक सीट जाटों को दे रही है। ऐसे में उसे बाकी तीन सीटों पर भी जाटों के सहयोग की अपेक्षा होना न्यायपरक है।
भले ही संसदीय चुनाव में जाटों ने एकजुट होकर भाजपा को वोट दिया लेकिन अभी तक भी उसकी सूची में किसी भी जाट को उम्मीदवार बनाने का जिक्र नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव में युद्धवीर सिंह को उम्मीदवार उसने बनाया भी था लेकिन जाट बाहुल्य इस सीट पर अकेला जाट होने के बावजूद उन्हें चौथे स्थान पर ही सब्र करना पड़ा। भाजपा के गैर जाट हिन्दुओं ने उन्हें वोट ही नहीं दिया जबकि जाट मत रालोद और भाजपा में बंट गये। ऐसे में हम दूसरों को दोष कैसे दे सकते हैं।
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वीएम सिंह की पार्टी से स. जगजीत सिंह मैदान में आ गये। रालोद भी किसी जाट को लाना चाहता है। ऐसे में भाजपा चाहते हुए भी किसी जाट को उम्मीदवार क्यों बनायेगी। स. जगजीत सिंह वास्तव में स्वच्छ छवि तथा शिक्षा क्षेत्र के समाजसेवी व्यक्तित्व हैं। ऐसे लोग विधायक बनें तो बहुत अच्छा होगा लेकिन आजकल राजनीति में ऐसे ही लोगों का जनता समर्थन क्यों नहीं करती? यह जगजीत सिंह भी जानते हैं और जनता भी।
रालोद से भी किसी अच्छे उम्मीदवार की उम्मीद है लेकिन उसमें पता नहीं कितना वक्त लगेगा? इन सभी बातों को देखकर सबसे पहले मैदान में उतरे जयदेव सिंह ही यहां भारी पड़ रहे हैं। उनके साथ बिरादरी के अलावा दलितों का बड़ा वोट बैंक तथा मुस्लिम अल्पसंख्यकों के भी मतदाता हैं। यदि जाट समुदाय उनके पक्ष में एकजुट खड़ा हुआ तो जिले में बिरादरी का एक जाट विधायक बन सकता है। मेरी यह व्यक्तिगत राय है। इसपर हम सभी को विचार करना चाहिए।
-जी.एस. चाहल.
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