रिजर्व बैंक और वित्तमंत्री का यह कहना कि ग्रामीण बैंकों में पर्याप्त कैश की व्यवस्था कर दी गयी है झूठा सिद्ध हो रहा है। यहां के गांवों की प्रथमा बैंक शाखाओं में कैश पर्याप्त मात्रा में नहीं भेजा जा रहा है।
इन शाखाओं में एक सप्ताह से दस दिन तक के बीच ही कैश उपलब्ध हो पा रहा है।
नोटबंदी के चालीस दिन गुजरने के बाद भी लोग पैसों को तरस गये हैं। किसान और ग्रामीण मजदूर तथा दुकानदार सबसे अधिक परेशान हैं।
शहरी क्षेत्रों में हालत इतनी खराब नहीं है।

ग्रामीण उपभोक्ता के बल पर यहां के शहरों का व्यापार चलता है। गांव की अर्थव्यवस्था खराब होने से शहरी व्यापार चौपट है। शहरी व्यापार के भरोसे बड़े शहरों के होल-सेल व्यापार केन्द्र और उद्योग धंधों का काम ठप्प होता जा रहा है।
निचले स्तर पर मांग गिरने से पूरी आर्थिक प्रवाह की चेन कहीं मंद पड़ गयी, कहीं पूरी तरह ठप्प भी हो गयी है।
खाद्य पदार्थ, जिनमें सब्जी, फल तथा दुग्ध उत्पाद सभी की मांग गिर गयी है। इससे किसान, व्यपारी तथा उद्योपगति सभी का हाल बेहाल हुआ है।
सरकारी अधिकारी, कर्मचारी और सरकारी नेता यानि सत्ताधारी दलों के नेताओं की आय बदस्तूर जारी है। उनपर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। यही लोग नोटबंदी की सराहना कर रहे हैं और परेशान हुए आम आदमी तथा व्यापारियों को झूठी सांत्वना देने में लगे हैं कि इसके परिणाम अच्छे होंगे।
-टाइम्स न्यूज़ गजरौला.
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