नोटबंदी : सप्ताह भर में एक बार कर रही प्रथमा बैंक भुगतान, लोगों में आक्रोश

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नोटबंदी के एक माह बाद ग्रामीण बैंकों की हालत में सुधार के बजाय स्थिति और भी बदतर हो गयी है।

अमरोहा, मुरादाबाद, रामपुर और संभल में ग्रामांचलों में प्रथमा बैंक की डेढ़ सौ शाखायें हैं जिनपर लगभग साढ़े चार हजार गांवों के लोग आश्रित हैं। इनमें किसान, मजदूर तथा छोटे व्यापारी शामिल हैं।

नोटबंदी के बाद से अधिकतर शाखाओं में सप्ताह में एक बार कैश आ रहा है। वह भी बहुत ही सीमित।

हाल में शहवाजपुर डोर और सिहाली जागीर की शाखाओं में लोगों को मात्र पांच-पांच सौ रुपये ही मिल सके। कई दिन से लाइनों में लगने के बाद मिली इस राशि से लोगों में भारी रोष देखने को मिला।

लोगों का कहना है कि दैनिक मजदूर भी इतनी मजदूरी काम करके कमा पाता है। यदि अपने जमा पैसों के लिए भी दिन भर काम छोड़कर लाइन में लगन में लगना पड़े और मात्र पांच सौ रुपये ही मिलें तो कैसे गुजारा होगा।

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जो लोग नोटबंदी शुरु होने के समय इसे अच्छा कदम बता रहे थे अब आलोचना पर उतर आये हैं तथा उनका विश्वास इस योजना को लागू करने वालों से उठ चुका है। वही लोग अब कह रहे हैं कि किसानों और गांव वालों को बेवकूफ बनाकर चंद शहरी पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए यह सब किया जा रहा है।

दिल्ली, नोएडा तथा चंडीगढ़ जैसे बड़े शहरों पर फोकस कर मीडिया, खासकर इलैक्ट्रिानिक मीडिया दिखा रहा है कि देश भर में बैंकों में लाइनें सिकुड़ती जा रही हैं। जबकि ग्रामीण भारत, जहां देश की 75 फीसदी आबादी रहती है उसे पूरी तरह नकारा जा रहा है।

भाजपा नेता गांवों की ओर जाकर भी नहीं देख रहे। विधानसभा चुनाव सिर पर हैं। सत्ताधारी नेता खुशफहमी पाल रहे हैं कि लोगों को कालेधन के नाम पर एक बार फिर से बरगलाकर उन्होंने अपने पाले में कर लिया है। गांवों से सरोकार रखने वाले नेता गांवों में घुसने तक का साहस नहीं जुटा पा रहे। निकट भविष्य में हालत ठीक होने के बजाय बिगड़ेगी -यह बात आम आदमी की समझ में आने लगी है। जनवरी आते-आते ऐसे लोग भी साहस तोड़ बैठेंगे जिन्हें अभी थोड़ा बहुत भरोसा है।

-टाइम्स न्यूज़ गजरौला.


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