पूरब के वकील, नेता और राज्य सरकार भी नहीं चाहते हाइकोर्ट ब्रांच

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सस्ता, सुलभ तथा त्वरित न्याय पाने को वकीलों के साथ आयें सभी लोग.


सभी लोगों को त्वरित, सस्ता तथा सुलभ न्याय पाने का हक है। देर से संघर्ष के साथ तथा महंगा न्याय हर पीड़ित प्राप्त नहीं कर पाता। ऐसे में न्याय व्यवस्था होने के बावजूद बहुत से लोग न्याय प्राप्त नहीं कर पाते।

देश के सबसे बड़ी आबादी के सूबे उत्तर प्रदेश की एक बड़ी आबादी आजादी के समय से ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाइकोर्ट ब्रांच की मांग करती आ रही है। इस क्षेत्र के अधिवक्ताओं ने इसके लिए एकजुट होकर बार-बार इस न्यायिक मांग को उठाया है।

अनेक बार धरने, प्रदर्शन और आंदोलन भी हुए हैं लेकिन हर आंदोलन की आवाज सभी सरकारों ने अनसुनी कर दी है। सूबे में लंबे समय तक अदल-बदलकर सपा और बसपा की सरकारें आती रहीं और केन्द्र में कांग्रेस की सरकार सबसे लंबे समय तक रही लेकिन किसी ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया।

यदि राज्य सरकारें इस ओर ध्यान देतीं और केन्द्र सरकारों को बाध्य करतीं तो यह समस्या हल हो गयी होती।

पूरब के वकील और नेता नहीं चाहते :

लखनऊ व इलाहाबाद के अधिवक्ता पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बेंच के खिलाफ हैं। वे अपने निजि स्वार्थों के वशीभूत ऐसा होने में अवरोध उत्पन्न करते हैं।

जो भी सरकार बनती है वह पूर्वी अफसरशाही, पूर्वी नेताओं की लामबंदी और वहां के अधिवक्ताओं के सामने घुटने टेक देती है। क्योंकि अधिकांश मुख्यमंत्री भी पूर्वी उत्तर प्रदेश के ही बने हैं तथा अधिकांश प्रधानमंत्री भी उधर से ही आते हैं। केवल चौधरी चरण सिंह और मायावती पश्चिमी उत्तर प्रदेश से रहे हैं, लेकिन राज्य की राजधानी लखनऊ और इलाहाबाद हाइकोर्ट दोनों ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश से दूर पड़ते हैं।

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ऐसे में पूर्वी उत्तर प्रदेश के नेता, अफसरशाही और छुटभैया दलाल उसी क्षेत्र के हैं। जिसके कारण वहां के अधिवक्ताओं का भी दबदबा इनपर कायम रहता है। इन सभी की मजबूत लामबंदी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों को न्याय मिलने में बाधा बनी हुई हैं।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिकांश मामले लखनऊ और इलाहाबाद में मौजूद वकीलों के पास पहुंचते हैं। यहां के कई वकील भी बार-बार आने जाने की परेशानी से बचने को अपने केस नहीं के किसी वकील को सौंप आते हैं। इस वजह से भी इधर के बहुत से अधिवक्ता दूसरी ब्रांच की मांग के नाम पर मौन साध जाते हैं।

अधिवक्ता और जनता साथ आयें तो बात बने :

बात आम आदमी, खासकर गरीब और साधनहीन व्यक्ति के न्याय की है। इसलिए अधिवक्ताओं को एकजुट होकर जनजागरण के लिए अभियान छेड़ना चाहिए। यह गंभीर मसला है। लोगों को इसमें एक साथ आना होगा। यह समय चुनावी है।

लोगों को राजनैतिक दलों की रैलियों के बजाय इस काम में वकीलों का साथ देना चाहिए। यहां किसी जाति, धर्म या वर्ग की बात नहीं बल्कि जरुरतमंदों को न्याय मिलने का मामला है। संघर्षरत वकीलों का साथ जरुरी है।

-टाइम्स न्यूज़ गजरौला.


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