केन्द्र सरकार द्वारा गेहूं आयात पर आयात शुल्क हटाने का फैसला न तो किसान हित में है और न ही इसे देश हित में कहा जा सकता है। किसानों को गेहूं के उचित दाम मिल सकते इसके लिए आयात को निरुत्साहित करने के लिए निर्यात शुल्क लगाया गया था।
हाल ही में बाजार में गेहूं के दाम 2400 रुपये तक चढ़ गये थे। इससे सरकार ने अनुमान लगाया कि गेहूं का स्टॉक देश में कम हो गया। उसका कारण समझे बिना गेहूं का भाव बढ़ने से रोकने के लिए उसे उसके आयात में छूट करने की योजना समझ में आयी। उसने आयात शुल्क शून्य कर दिया।
गेहूं के भाव तबतक ऊंचे रहेंगे, जबतक गेहूं व्यापारियों के पास है। तीन माह बाद जैसे ही किसानों के घर गेहूं आयेगा, तबतक भाव स्वतः ही नीचे आ जायेंगे। सरकारी आयात भी तभी तक आयेगा। इससे दोहरा नुक्सान होगा।
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सरकार को आयात शुल्क नहीं मिलेगा और किसानों को गेहूं का सामान्य से कम भाव मिलेगा। यानि किसान को नुक्सान पहुंचाने के लिए देश को मिलने वाले शुल्क में घाटा उठाने को तैयार है।
क्या केन्द्र सरकार किसानों को पूरी तरह बरबाद करना चाहती है?
महाराष्ट्र के किसानों को गन्ना बोने से अयोग्य कर बरबाद किया गया। कपास की कीमत गिरने से गुजरात के किसान बरबाद हैं।
पंजाब-हरियाणा को धान का मूल्य गिराकर खेती से हतोत्साहित किया जा रहा है और गेहूं पर आयात शुल्क हटाकर गेहूं उत्पादक यूपी और पंजाब दोनों राज्यों के किसानों को झटका देने की भाजपा सरकार ने नीति बना ली है।
किसानों को बरबाद करने वाले, अपनी बरबादी को तैयार रहें।
-टाइम्स न्यूज़ गजरौला.
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