तुर्क आंदोलन में गजरौला के इ.ओ. कामिल पाशा की भूमिका पर सवाल

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कामिल पाशा के पिता मो. आकिल मुन्ना महबूब अली के खिलाफ चुनाव भी लड़ते रहे हैं.



कैबिनेट मंत्री महबूब अली के खिलाफ तुर्किस्तान में जारी आंदोलन को गजरौला से भी खाद पानी मुहैया कराया जा रहा है। इसका प्रमाण नगर पालिका परिषद के इ.ओ. कामिल पाशा का शौकत पाशा मर्डर के बाद से लगातार जोया और डिडौली युवा तुर्कों से संपर्क करने से मिलते हैं।

उल्लेखनीय है कामिल पाशा के पिता मो. आकिल मुन्ना कांग्रेस नेता हैं। वे महबूब अली के खिलाफ चुनाव भी लड़ते रहे हैं तथा जोया ब्लॉक प्रमुखी चुनाव के दौरान उन्होंने महबूब अली के भतीजे के बजाय अपने परिवार यानि तुर्क बिरादरी के बेटे को यह पद दिलाने को तुर्क बिरादरी का समर्थन किया था।

स्थानीय सपा सूत्रों से पता चला है कि पूर्व विधायक आकिल मुन्ना तुर्क बिरादरी को शौकत पाशा मर्डर केस के बहाने एकजुट करने वाले तुर्कों में महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं। उनका एक बेटा गांव की प्रधानी तक का चुनाव भी हार गया था। लगातार कई चुनावों में भारी खर्च और हार के कारण वे पीछे नहीं हट रहे। इसका बड़ा कारण है, उनके बेटे मो. कामिल पाशा द्वारा उनकी लगातार आर्थिक मदद करना।

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यह बताने की आवश्यकता नहीं कि लगभग चौदह वर्षों से लगातार गजरौला के इ.ओ. के पद पर काबिज कामिल पाशा यहां से अथाह अवैध कमाई कर रहे हैं। यहां उनके खिलाफ कई बार शिकायतें भी हुईं लेकिन उनके खिलाफ कार्रवाई तो क्या स्थानांतरण तक नहीं हो सका।

पिछले लोकसभा चुनाव में जिस क्षेत्र में आकिल मुन्ना ने चुनाव लड़ा उनके बेटे की ड्यूटी उसी क्षेत्र में थी। यह भी तो एक बड़ा कमाल है। एक स्थान पर इतने लंबे समय तक रहने से उन्होंने कमाई का एक बड़ा नेटवर्क खड़ा किया है जिसकी ओर न तो शासन न ही प्रशासन और न ही चुनाव आयोग ने ध्यान दिया। अब जो लोग तुर्क आंदोलन में इ.ओ. के सहयोग की बात कर रहे हैं, उसमें किसी हद तक दम है। यह पता लगाया जाना जिला प्रशासन का काम है कि चौदह वर्षों से इ.ओ. एक ही स्थान पर कैसे डटा है? साथ ही तुर्क आंदोलन में उसकी क्या भूमिका है?

-टाइम्स न्यूज़ गजरौला.


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