जिस भाजपा को यहां के जाट लोकसभा चुनाव से आज तक अंध समर्थन करते आ रहे हैं उसे जाटों से कोई लगाव नहीं बल्कि वह इस वर्ग की लगातार उपेक्षा करती आ रही है। भाजपा जाटों को दूसरे समुदायों से अलग-थलग करने का कुचक्र चल रही है। भोले जाट इस कुचक्र को नहीं समझ रहे।
जिले में आबादी के हिसाब से चुनावी परिणामों को चारों सीटों पर प्रभावित करने की क्षमता में हैं। फिर भी भाजपा ने किसी भी सीट पर किसी भी जाट को उम्मीदवार नहीं बनाया।
खड़गवंशी जिले में केवल हसनपुर सीट पर अच्छी तादाद में हैं। मंडी धनौरा में वे बहुत सीमित संख्या में हैं तथा नौगांवा और अमरोहा सीटों पर वे कहीं दिखाई नहीं पड़ते। फिर भी भाजपा ने एक सीट उन्हें जिले में दी है। गूजर आबादी भी जाटों से कम है। उन्हें लोकसभा की सीट भाजपा ने दी और जिलाध्यक्ष का पद भी प्रदान किया। हालांकि गूजरों की सबसे अधिक आबादी वाली हसनपुर सीट के गूजरों की बड़ी तादाद भाजपा की धुर विरोधी सपा के साथ है।
जिला संगठन या सत्ता में भी जिले के जाटों को भाजपा ने तरजीह नहीं दी। जबकि बसपा ने विधानसभा की नौगांवा सीट जाटों को दी है। जिला पंचायत में कई सीटों पर बसपा से जाटों ने जीत हासिल की।
अमरोहा ब्लॉक प्रमुख बसपा से जाट रहा। अब सपा का जाट है। गजरौला में भी दो जाट-बसपा और सपा से ब्लॉक प्रमुख रहे। जिला पंचायत अध्यक्ष जाट महिला भी भाजपा के बजाय सपा से ही बन सकी।
डा. हरि सिंह ढिल्लो रालोद में एमएलसी रहे। उनकी पत्नि ब्लाक प्रमुख रहीं। वे भी भाजपा में आ घुसे। भाजपा में वे कुछ भी नहीं बन पायेंगे। चन्द्रपाल सिंह, हरगोविन्द सिंह एमपी बने थे। वे भी भाजपा या जनसंघ से नहीं बने, महेन्द्र सिंह, नौनिहाल सिंह, कांसीराम विधायक बने लेकिन भाजपा और जनसंघ से नहीं। नानक सिंह इफको के राष्ट्रीय प्रमुख बने वह भी भाजपा या ब्रजपाल सिंह ब्लॉक प्रमुख बने थे, वह भी सपा से बने थे। इंदिरावती जिला पंचायत बनी थीं। वह भी गैर भाजपायी दल से।
मंडी धनौरा के ब्लॉक प्रमुख परम सिंह चाहल तथा सचिव ढ्यौटी बने थे भी गैर भाजपा दलों से ही बने थे। पालनपुर वाले होमपाल सिंह एक बार सहकारी बैंक के चेयरमैन सपा से बने थे। गैर भाजपा दलों में रहने पर जाटों ने जिले में बल्कि राष्ट्रीय स्तर भी पदभार ग्रहण करने के अवसर प्राप्त किये।
अमरोहा जनपद में जाटों का राजनैतिक अस्तित्व तब से खतरे में पड़ा है, या यह करें कि उनका राजनैतिक कद घटा है, जब से उन्होंने भाजपा का दामन थामा है। उन्हें संगठन तक में महत्व नहीं। इससे बड़ी उपेक्षा क्या होगी? बिरादरी की नयी पीढ़ी को एकजुट होकर अपने बुजुर्गों से भी विचार विमर्श करना होगा।
-टाइम्स न्यूज़ अमरोहा.
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