चुनाव में ली जायें बेरोजगारों की सेवायें

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जो सरकारी कर्मचारी सरकारी काम में लगाये गये हैं, उन्हें चुनाव से बचाया जा सकता है.


हम सभी जानते हैं कि देश में बेरोजगारों की बड़ी तादाद है जो घटने के बजाय सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती जा रही है। पहले कहा जाता था शिक्षा के अभाव में युवा शक्ति बेरोजगार है। अब अनपढ़ों से पढ़े लिखे बेरोजगारों की तादाद अधिक है। निर्वाचन आयोग भी इससे अच्छी तरह वाकिफ है। आयेदिन आचार संहिता के उच्च आदर्शों का हवाला देकर कुछ काम ऐसे भी हो रहे हैं जिन्हें अनाचार कहना तो शोभनीय नहीं होगा बल्कि वे सदाचार के खांचे में भी पूरी तरह नहीं बैठते।

चुनावों को शांतिपूर्ण तथा निष्पक्ष कराने के लिए लंबे चौड़े लाव लश्कर का प्रबंध किया जाता है। इसके लिए सरकारी कर्मचारी और अफसर काम में लगाये जाते हैं। तहसील, विकास खंड कार्यालयों में महीनों सारा काम ठप हो जाता है। स्कूलों के अध्यापकों, स्वास्थ्य सेवाओं में लगे कर्मियों तक को इस काम में झोंक दिया जाता है। भले ही ड्यूटी लगने में समय हो लेकिन सरकारी कर्मचारी चुनाव शुरु होने का बहाना कर लोगों को टरकाने लगते हैं। मतदान के बाद से मतगणना समाप्त होने तक सरकारी दफ्तरों में काम बंद रहता है। जबकि कई कर्मचारी थकान का बहाना कर उसके बाद भी कई दिनों तक काम पर नहीं लौटते।

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नये साल के आगमन के साथ ही चुनावी दंगल शुरु है। इस दंगल का पटाक्षेप 11 मार्च को मतगणना के साथ होगा लेकिन अप्रैल के आरंभ से पूर्व सरकारी मकहमे अपनी रफ्तार में नहीं आयेंगे। तीन माह के बेशकीमती समय में सभी सरकारी कर्मचारी वोट महोत्सव में लगे रहेंगे। जुलाई नगर निकायों के चुनावों में फिर यह क्रम चलेगा।

जो सरकारी कर्मचारी सरकारी काम में लगाये गये हैं। उन्हें चुनाव से बचाया जा सकता है। चन्द महत्वपूर्ण पदों को छोड़कर बेरोजगार पढ़े लिखे नवयुवक उनसे भी बेहतर ढंग से काम कर सकते हैं। सरकारी फौज के स्थान पर उन्हें लगाया जाना चाहिए। इससे उन्हें थोड़ा काम भी मिलेगा और सरकारी महकमों में ठप्प काम भी बदस्तूर जारी रहेगा। चुनाव आयोग को इस विचार पर गंभीरता से मनन कर इसे अमल में लाना चाहिए।

-जी.एस. चाहल.


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