देश को नोटबंदी नहीं, नसबंदी की जरुरत है। देश में बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, यौन अपराध, हत्या तथा लूट जैसे अपराधों की बाढ़ आयी है। उसके लिए तेजी से बढ़ रही जनसंख्या सबसे बड़ा कारण है।
जितनी तेजी से देश की आबादी बढ़ रही है उतनी तेजी से हमारे संसाधन नहीं बढ़ रहे बल्कि कम होते जा रहे हैं।
आजादी के बाद देश में कृषि, उद्योग, बिजली, सड़क, रेल, शिक्षा, स्वास्थ्य और सेवा क्षेत्र में लगातार प्रगति हुई है। जिस समय देश ने आजादी की सांस ली उस समय बल्कि वर्षों बाद तक देश में साईकिल की सवारी करने वाले लोग इतने भी नहीं थे जितने आज कारों में सवार हैं बल्कि साईकिलें विदेशों से मंगायी जाती थीं।
हमारी चंद वर्षों की मेहनत और उन नेताओं के मार्गदर्शन से हम मंगल तक पहुंचने में सफल रहे। कार, ट्रैक्टर तथा भारी मशीनें निर्यात करने में सक्षम हो गये। अधिकांश गांव सड़कों से जुड़े हैं। दो-तीन डिब्बे की रेलगाड़ियां, विद्युत चालित कई-कई दर्जन डिब्बों वाली गाड़ियों में तब्दील हो गयीं।
गरीबी तथा गरीबों और अमीरों का अनुपात घटा है। विकास की जितनी लंबी सूची है उसके लिए एक बड़ी पुस्तक चाहिए। बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर हर शहर, कस्बे बल्कि ग्रामांचलों में बैंक खोलने का काम बीसवीं सदी के अंत तक बड़े पैमाने पर हुआ।
कई बड़े आर्थिक सुधार हुए लेकिन शोर शराबे के बिना।
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इतना कुछ विकास होता रहा लेकिन आबादी की रफ्तार लोगों ने उससे भी तेज रखी। बहुत से लोगों ने तो आजादी का मतलब बच्चे बनाने की आजादी मान लिया।
इस बढ़ती आबादी ने इतनी रफ्तार पकड़ ली कि विकास की रफ्तार उससे पीछे छूट गयी। इंदिरा गांधी ने 1976 में इसे काबू करने की कोशिश की लेकिन जो तरीका अपनाया गया उससे जनता में भय और आतंक का माहौल बना। अफसरशाही और सरकारी नौकरों पर अनावश्यक दबाव तथा उनके द्वारा लोगों से जोर जर्बदस्ती ने एक बेहतर काम को गलत तरीके से लागू कर उसका ध्येय ही समाप्त कर दिया जिसके बाद तत्कालीन सरकार को सत्ता से हाथ धोना पड़ा।
उसके बाद किसी भी नेता या सरकार ने देश की जनसंख्या नियंत्रण की नहीं सोची। यही कारण है कि देश में लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। जहां भी देखो भीड़ ही भीड़ है।
स्कूल, कालेज, अस्पताल, कोर्ट, कचहरी, बाजार, सड़कें और गली-मुहल्ले लोगों से अटे पड़े हैं। महानगरों में प्रदूषण और गंदगी बढ़ती जनसंख्या के कारण विकराल होती जा रही है।
जनसंख्या को काबू करने के लिए दो से अधिक बच्चे उत्पन्न करने पर प्रतिबंध लगाने जैसे उपाय की जरुरत है। पचास समस्यायें एक समस्या के समाधान के बाद हल करनी सुलभ हो जायेंगी बल्कि बहुत सी समस्यायें तो अपने आप ही हल हो जायेंगी।
यह काम बिल्ली के गले में घंटी बांधने जैसा है लेकिन जो सत्ता की कुर्सी पर बैठने का आनंद ले रहे हैं, यह घंटी तो उन्हें बांधनी होगी। देश को बचाने का अब यही रास्ता है।
शब्दजाल और भाषणों से जनता को बरगलाकर सत्ता पायी जा सकती है लेकिन देश सेवा के लिए कथनी को करनी में लाना होगा।
-जी.एस. चाहल.
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