इस विधानसभा सीट पर इस बार सपा-बसपा में बहुत ही कांटे की टक्कर के आसार बन रहे हैं। यहां सपा के सदाबहार नेता महबूब अली पार्टी की गुटबंदी से अप्रभावित हैं। उनके सामने सपा का दूसरा कोई भी नेता मैदान में नहीं है। वे यहां सपा के सर्वमान्य उम्मीदवार हैं। उनके बेटे परवेज अली विधान परिषद के सदस्य हैं।
बसपा ने यहां से नौशाद अली इंजीनियर को अपना उम्मीदवार बनाया है। भले ही नौगांवा से भाजपा के दर्जन भर नेता उम्मीदवार बनना चाह रहे हों लेकिन यहां से भाजपा का अभी कोई नाम सामने नहीं आया।
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2014 में हुए लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में भी महबूब अली ने इस सीट पर सपा उम्मीदवार को तीस हजार की बढ़त दिलाई थी। इससे भी यहां महबूब अली की लोकप्रियता का पता चलता है।
भले ही जातीय आधार पर नौशाद इंजीनियर यहां भारी दिखाई दे रहे हैं लेकिन महबूब अली की रणनीतिक कुशलता यहां के जातीय आधार पर हमेशा भारी पड़ती रही है।
2012 विधानसभा चुनाव में नौशाद अली पीस पार्टी से महबूब अली के सामने मैदान में थे. नौशाद को 24,768 वोट प्राप्त हुए थे, जबकि महबूब अली 60,807 वोट हासिल कर विजेता बने.
इस बार तुर्क समाज में महबूब अली के खिलाफ जो तूफान उठा था उसे भी वे काफी ठंडा कर चुके तथा मतदान तक वे इस वर्ग को भी साधने में सफल हो सकते हैं। अंसारी मतदाता महबूब अली ने पहले ही अपने साथ कर लिए हैं।
नौशाद के पक्ष में भी कई मजबूत कारण हैं। उनके सजातीय सैफी मतदाता महबूब अली के सजातीय तेली समुदाय से कहीं अधिक हैं। बसपा का परंपरागत दलित मतदाता एकजुट उनके साथ है।
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जाट समुदाय महबूब अली के विरोध के कारण भाजपा के बजाय इंजीनियर के साथ जा सकता है। कुल मिलाकर इस सीट पर सपा-बसपा में ही मुख्य मुकाबले की संभावना है।
भाजपा यहां कमजोर दिखती है। कांग्रेस और रालोद को लोग भूलते जा रहे हैं।
-टाइम्स न्यूज़ अमरोहा.
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