यूपी चुनाव 2017 : अभी और भड़केगी सपा विवाद की आग

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अखिलेश को सत्ता का जो लड्डू बैठे बिठाये मिल गया था उसके जायके ने उन्हें मदांध कर दिया.


समाजवादी पार्टी की गृह-कलह इतनी गंभीर स्थिति तक पहुंच चुकी कि उसका समाधान करना अब किसी के बस की बात नहीं। राजनीति के चतुर खिलाड़ी माने जाने वाले मुलायम सिंह यादव लाख कोशिश के बावजूद इसे सुलझा नहीं पायेंगे।

अखिलेश यादव को सत्ता का जो लड्डू बैठे बिठाये मिल गया था उसके जायके ने उन्हें मदांध कर दिया है। जब तक वे मुख्यमंत्री हैं तबतक वे सत्ता के नशे में मदहोश हैं तथा उन्हें लग रहा है कि इस समय उनसे ताकतवर कोई नहीं। उन्हें अभी पता नहीं कि सत्ता के कारण ही लोग उनके साथ दिखाई दे रहे हैं और उन्हें यहां स्थापित करने के पीछे मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव का दशकों तक का संघर्ष और बलिदान है। यदि वे इनके द्वारा सौंपी ताकत का इस्तेमाल इन दोनों पर करके उन्हें यह दिखाना चाहते हैं कि पिता और चाचा से वह ताकतवर हैं, तो अखिलेश का यह गर्व केवल चुनाव तक है। इस बगावत के परिणाम का पता उन्हें चुनाव के बाद ही चल जायेगा। जो उनकी जय-जयकार कर अपने हित साधन में हैं, वे उनके बुलाने पर भी नहीं आयेंगे।


उधर मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव भी उस दिन को याद कर रहे होंगे जिस दिन उन्होंने अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री का पद सौंपा था। यह लड़ाई दो समानांतर ताकतों में हैं -एक मुलायम सिंह यादव और उनके भाई शिवपाल यादव हैं, दूसरी ओर अखिलेश यादव तथा रामगोपाल यादव हैं। इसी के साथ एक दूसरी पार्टी भी है जिसकी चर्चा नहीं हो रही।

अखिलेश यादव के छोटे भाई प्रतीक यादव और उनकी पत्नि अपर्णा यादव को भी अखिलेश खतरा मान रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि अभी तो उन्हें सपा का वारिस होने के लिए चाचा शिवापाल यादव से ही जूझना पड़ रहा है, यदि छोटे भाई और उसकी पत्नि को सियासी ताकत मिल गयी तो पिता और चाचा कहीं उसे आगे कर उसकी सत्ता में भागीदारी न दे दें। यही कारण है कि अखिलेश की सूची में अपर्णा यादव का नाम नहीं है।

हो सकता है अखिलेश यादव और प्रो. रामगोपाल यादव यह मंथन कर चुके हैं। नहीं तो समझौते के बाद अखिलेश यादव का अधिवेशन बुलाने और मुलायम सिंह यादव की जगह स्वयं को राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित करने के साथ शिवपाल यादव को भी प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने का क्या कारण है?

सपा के इस ताजा घटनाक्रम से तो यही लगता है कि अब सपा की समस्या सुलझने के बजाय और उलझेगी। चुनाव के मौके पर यह विवाद उसे बर्बाद कर देगा।

-जी.एस. चाहल.


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