समाजवादी पार्टी पर वर्चस्व को लेकर पिता-पुत्र विवाद अभी और बढ़ेगा तथा अब यह लगभग निश्चित हो गया कि दोनों की राजनीतिक डगर विपरीत दिशाओं में जायेगी। इससे यह आसार भी प्रबल हो गये हैं कि या तो साईकिल मुलायम सिंह यादव को मिलेगी अथवा वह दोनों में से किसी को भी न मिलकर चुनाव आयोग के दफ्तर में लॉक कर दी जायेगी। अधिक संभावना समाजवादियों को साईकिल से पैदल किये जाने की है।
तीन घंटे लखनऊ में पिता-पुत्र में चली वार्ता बेनतीजा रही। हालांकि वरिष्ठ मंत्री आजम खां ने विवाद समाप्त करने का प्रयास किया लेकिन प्रेम का धागा इतनी बुरी तरह से टूट चुका कि उसमें गांठ बांधने लायक भी कुछ नहीं बचा।

बैठक में अखिलेश अपने पिता को सपा राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद कुछ शर्तों पर देने को तैयार थे लेकिन वे शिवपाल यादव को प्रदेश की राजनीति से अलग करने और प्रो. रामगोपाल यादव के खिलाफ कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे। वे टिकट वितरण पर किसी का भी हस्तक्षेप स्वीकार करने को राजी नहीं हुए।
दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि अखिलेश उस स्थिति में स्वयं को स्थापित करना चाहते थे जैसे उनके मुख्यमंत्री बनने से पूर्व मुलायम सिंह यादव का सपा पर कब्जा था।
बेनतीजा रही इस बैठक में पिता-पुत्र के रास्ते राजनीतिक रुप से जुदा हो गये। रामगोपाल यादव ने खुलकर ही कह दिया कि अब किसी समझौते ही जरुरत नहीं, पार्टी के सर्वमान्य नेता अखिलेश यादव हैं। पार्टी के 90 फीसदी नेता और कार्यकर्ता उनके साथ हैं।
-जी.एस. चाहल.
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