यह कोई नहीं बताने वाला कि किसानों की आय दोगुनी कैसे होगी?

किसान-गेहूं-कृषि-भारत
ढाई साल पहले आमदनी डेढ़ गुनी करने के वादे का क्या हश्र हुआ लोग अच्छी तरह जानते हैं.


वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा केन्द्र सरकार के वित्त वर्ष 2017-18 के लिए जिस बजट को पेश किया गया है उससे गांव, गरीब और किसान को कोई राहत नहीं मिलने वाली। नोटबंदी की मार बेरोजगारी के शिकार, फसलों की बेकद्री से आहत और कर्ज के बोझ से दबे इन वर्गों को अब अपनी मेहनत और भाग्य के भरोसे ही इन मुसीबतों के भंवरजाल से निकलना होगा। इस बार के बजट में उपरोक्त समस्याओं की कोई मंशा स्पष्ट दिखाई नहीं देती। यह कहकर कि पांच साल में किसानों की आमदनी दागुनी की जायेगी, इन वर्गों के घावों पर नमक छिड़कने का काम किया है। यह कोई नहीं बताने वाला कि दोगुनी आय कैसे होगी? ढाई साल पहले आमदनी डेढ़ गुनी करने के वादे का क्या हश्र हुआ लोग अच्छी तरह जानते हैं।

गांव, गरीब और किसान नोटबंदी के बाद सबसे अधिक परेशान हैं। किसानों को फसलें बोने को खाद, बीज तथा कीटनाशकों में दिक्कत हुई। उनकी सब्जियां और फल बिक नहीं पाये, उन्हें भाड़े के भाव तथा कहीं-कहीं तो सड़कों पर फेंकना पड़ा। गन्ने जैसी नकद फसल से थोड़ी राहत की उम्मीद थी, उसका भी समय से भुगतान उपलब्ध नहीं हो सका। गांव के मजदूरों को काम न मिलने से वे बेरोजगार हो गये। इनमें छोटे किसान और खेतीहर मजदूर शामिल हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल तथा मध्य प्रदेश के ग्रामांचलों में भारी संख्या में मजदूर शहरों से वापस गांवों की ओर लौटे जो गुजर-बसर के लिए बड़े शहरों में मजदूरी करते थे।

ऐसे में गांव के गरीब, किसान और मजदूर मोदी सरकार से बड़ी उम्मीद लगाये थे कि उनके लिए कुछ न कुछ किया जायेगा। वे भूखे प्यासे दो माह तक मोदी के इस आश्वासन पर कि तीस दिसंबर के बाद उनकी यह तकलीफ उनके लिए अच्छे दिन लेकर आयेगी। मोदी ने दावे के साथ कहा था कि अब अमीरों की नींद हराम होगी तथा गरीब चैन की नींद सोयेंगे। भाजपा प्रवक्ता संवित पात्रा जैसे इसे समुद्र मंथन की संज्ञा देकर गरीबों को अमृत पान की कहानियां सुना-सुनाकर आनंद ले रहे थे।

किसान सोच रहे थे कि सरकार ने सारा कालाधन कब्जा लिया। बजट में इससे गांव, गरीब और किसान को भी कुछ न कुछ हासिल होगा। कर्ज से दबा किसान, सरकार से कर्ज का बोझ हल्का करने की उम्मीद बेसब्री से कर रहा था। बेरोजगार सरकार से रोजगार की अपेक्षा कर रहे थे। परंतु हुआ इसका विपरीत, किसानों को और अधिक कर्ज से लादने की बात कही गयी है। लगता है सरकार कर्ज चुकाने से मजबूर किसानों की हत्याओं से अभी संतुष्ट नहीं। वह उनकी संख्या में इजाफा चाहती है। लघु व सीमांत किसानों का कर्ज माफ नहीं किया गया तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था पूरी तरह लड़खड़ायेगी जिसका दुष्प्रभाव देश की समग्र अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।

शहरों से काम बंद होने पर गांवों में तीन माह से खाली नवयुवक अब आर्थिक रुप से पूरी तरह टूट चुके। उनमें से बहुत से 'बुभुक्षितः किम् न करोति पापम्' की तर्ज पर आपराधिक गतिविधियों में जाने को मजबूर होंगे। जिसका शिकार न जाने कितने बेकसूर लोगों को होना पड़ सकता है।

जानेमाने कृषि अर्थशास्त्री देविन्दर शर्मा का कहना है कि सरकार भले ही यह कहती हो कि अगले पांच साल में किसानों की आमदनी दागुनी की जायेगी लेकिन वह हमेशा एक छुपे एजेंडे के तहत काम करती है। उनका कहना है कि राष्ट्रीय कौशल विकास परिषद ने लक्ष्य तय किया है कि देश में 2022 तक खेती में काम करने वालों की संख्या कम करके 38 फीसदी पर लानी है। दरअसल सरकार किसानों को मजदूर बनाने पर तुली है जिससे कार्पोरेट घरानों को सस्ते मजदूर मिल सकें। सरकार ने कार्पोरेट खेती का एलान कर स्पष्ट कर दिया है कि खेती को किसानों से छीनकर कार्पोरेट के हवाले किया जायेगा।

मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही नये भूमि अधिग्रहण बिल को इसी मकसद से लाने को एड़ी-चोटी का जोर लगाया था। राजमार्गों और रेल लाइनों के दोनों ओर दो-दो किलोमीटर भूमि अधिग्रहण के बाद किसानों के पास बचता ही क्या?

देविन्दर शर्मा का यह भी कहना है कि कृषि के लिए जिस दस लाख करोड़ रुपयों के ऋण का बजट में प्रस्ताव है उसमें से भी अधिकांश कृषि व्यापार के नाम पर व्यापारी हड़प लेते हैं। विधानसभा चुनावों के मद्देनजर किसानों को दोगुनी आमदनी का आश्वासन दिया जा रहा है। जबकि किसानों के सामने मोदी सरकार का यह तीसरा बजट है। किसानों के बजाय तीन वर्षों से कार्पोरेट को लाभ दिलाने के लिए काम हो रहा है।

-जी.एस. चाहल.


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