ऐसे ड्रामे होंगे तो इस देश का क्या होगा?

तमिलनाडु-विधानसभा-में-ड्रामा
ऐसे मंजर देख कर सवाल एक नहीं, अनगिनत मन में उभरते हैं.


राजनीति में ड्रामेबाजी की कोई सीमा नहीं होती। कई बार राजनेता ऐसे ड्रामे कर जाते हैं जिसकी कीमत लोकतंत्र को चुकानी पड़ती है। जयललिता के समय में तमिलनाडु विधानसभा में ऐसी ड्रामेबाजी शायद ही कभी देखने को मिली हो। उनके स्वर्ग सिधारने के बाद तो मानो तमिलनाडु में भूचाल आ गया। पहले शशिकला और पनीरसेल्वम के बीच तकरार। बाद में शशिकला को जेल और मोमबत्तियां बनाने का काम। फिर पलानीस्वामी और पनीरसेल्वम के बीच मुख्यमंत्री बनने की जंग। अब सदन में इतना ड्रामा की नौबत तोड़फोड़ तक आ गयी। टेबल तोड़ दिया गया। माइक तक को नहीं बख्शा गया। उसे उखाड़ लिया गया। धक्कामुक्की और कपड़े फाड़ने तक के प्रयास हुए। कुर्सियों को इधर-उधर फेंक कर अपना रोष जताया गया। हद होती है ऐसी राजनीति की। हद होती है ऐसे नेताओं की जिन्हें कुर्सी की परवाह है, सदन की गरिमा की कतई नहीं।

सबसे मजेदार यह रहा कि मीडिया को सदन में प्रवेश की इजाजत नहीं दी गयी। जब सबकुछ टूट-फूट गया तो टीवी चैनलों पर प्रसारण हो सका। उस दृश्य को जिसने भी देखा वह हक्काबक्का रहे बिना न रह सका। गंभीरता से सोचा जाये तो यदि ऐसे ड्रामे होंगे तो इस देश का क्या होगा? एक तरह से यह जोकरबाजी से ज्यादा कुछ भी नहीं। बाद में मीडिया को एमके स्टालिन दिखा रहे हैं कि उनकी कमीज फाड़ी गयी है। यह हाल ऐसी जगह का है जहां से राज्य चलता है।

यदि लोग उपद्रव करें या सरकारी संपत्ति को किसी भी वजह से नुकसान पहुंचाये या उनसे वह गलती से हो जाये तो उनपर केस पर केस। और यहां तो जनता के नुमाइंदे ही लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा गये, उनका क्या?

ऐसे मंजर देख कर सवाल एक नहीं, अनगिनत मन में उभरते हैं। मगर हर बार यह सोचकर चुप्पी साध ली जाती है कि इनका कुछ नहीं हो सकता। इनपर कानून का डंडा मंदा है। तभी राजनीति के स्तर में गिरावट दर्ज की जा रही है।

-गजरौला टाइम्स डॉट कॉम.


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