किडनी शरीर का एक ऐसा अंग होता है जो शरीर से विषाक्त पदार्थों को छानकर मूत्र के रूप में निकालने में मदद करता है। इसमें खराबी मतलब पूरे शरीर के कार्य में बाधा उत्पन्न होना, इसलिए किडनी को स्वस्थ रखना बहुत ज़रूरी होता है। लेकिन आज के आधुनिक युग की जीवनशैली के कारण किडनी की बीमारी होने का खतरा बढ़ गया है। उक्त विचार विश्व किडनी दिवस के अवसर पर आयोजित एक मेडिकल कैम्प में जिंदल हॉस्पिटल के चिकित्साधिकारी डॉ.दिलबाग जिंदल ने व्यक्त किये।
उन्होंने जानकारी दी कि प्रतिवर्ष मार्च के हर दूसरे बृहस्पतिवार को विश्व गुर्दा दिवस मनाया जाता है। किडनी की सेहत के बारे में जागरूकता के प्रचार-प्रसार के लिए इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी यानी अई.एस.एन., बेल्जियम और इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ किडनी फाउंडेशन यानी आई.एफ.के.एफ., नीदरलैंड ने संयुक्त रूप से विश्व किडनी दिवस मनाने की शुरुआत की। इन्हीं के साथ जुड़कर जिंदल हॉस्पिटल भी लोगों को शरीर के इस महत्वपूर्ण अंग के प्रति सचेत और जागरूक कर, इसमें अपना सहयोग प्रदान करता है। इस वर्ष इस कार्यक्रम की थीम ‘गुर्दे के रोग एवं मोटापा’ निर्धारित की गयी है।
जिंदल हॉस्पिटल की बालरोग विशेषज्ञ डॉ.राधा जिंदल ने जानकारी दी कि किडनी हमारे शरीर का संतुलनकारी अंग है। इसका मतलब है कि शरीर में कोई भी चीज ज्यादा या कम होने पर किडनी उसे संभाल लेती है। मुख्य तौर पर यह नमक और पानी को संतुलित करती है। इसके अलावा और भी कई काम जैसे खून बनाना, हड्डियों को मजबूत करना यानी विटामिन डी बनाना, ब्लडप्रेशर नियंत्रित करना और वेस्ट प्रोडक्ट्स यानी कि टॉक्सिन्स शरीर से बाहर निकालना जैसे काम किडनी करती है।
गुर्दे की बीमारी के शुरूआती लक्षणों के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि गुर्दे में कमी होने पर मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है या कम हो जाती है, साथ ही मूत्र का रंग गाढ़ा हो जाता है। व्यक्ति को बार-बार मूत्र होने का एहसास होता है, मगर करने पर नहीं होता है। पेशाब करते समय दर्द होना, मूत्र में रक्त का आना, झाग जैसा मूत्र आना, पैर, हाथ और चेहरे में सूजन आदि इन लक्षणों का थोड़ा भी एहसास होने पर तुरन्त इसकी जाँच करवायें और चिकित्सक के सलाह के अनुसार इलाज करना शुरू करें नहीं तो समय के साथ स्थिति खराब होती जाती है।
हॉस्पिटल के पैथोलोजिस्ट संदीप आर्य ने लोगों का बताया कि गुर्दे की बीमारी का शीघ्र पता चलने पर इसमें इलाज संभव है और बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है। इसलिए जरूरी है कि ब्लड प्रेशर, शुगर, खून की मात्रा और प्रोटीन की जांच के अलावा खून में यूरिया, किडनी की पथरी, पेशाब में रुकावट, गदूद व कैंसर की भी नियमित जाच कराएं। साथ ही पेशाब की मात्रा व धार की भी जांच जरूरी है।
हॉस्पिटल के प्रबंध निदेशक डॉ.बी.एस.जिंदल ने कार्यक्रम में अपने संबोधन में कहा कि गुर्दा खराब होने की बीमारी को ‘साइलेन्ट किलर’ भी कहा जाता है। क्योंकि प्रथम अवस्था में कई बार इसका पता नहीं चलता है। उन्होंने बताया, पिछले कुछ वर्षो में भारत में क्रॉनिक किडनी डिजीज यानी गुर्दे खराब होने की समस्या तेजी से बढ़ी है। शुरुआती दौर में जांच और सही इलाज से बीमारी को गंभीर होने से रोका जा सकता है और ऐसे में इलाज के परिणाम भी अच्छे आते हैं।
उन्होंने आगाह किया कि ऐसे लोग जिन्हें डायबीटीज, हाई ब्लड प्रेशर, दिल की बिमारी है, दर्द निवारक दवाओं का अधिक प्रयोग करते हैं और किडनी फेलियर का उनका पारिवारिक इतिहास है, उनमें गुर्दा खराब होने का खतरा काफी ज्यादा रहता है। इसलिए नमक का कम सेवन, पर्याप्त मात्रा में पानी पीना, मूत्र को ज़्यादा देर तक दबाकर न रखना, धूम्रपान और शराब से परहेज, नियमित रूप से व्यायाम आदि उपाय अति आवश्यक हैं। डॉ.जिंदल ने कहा कि अगर आप स्वस्थ जीवन शैली का चुनाव करेंगे, तो आप आसानी से किडनी को खराब होने से बचा सकते हैं।
इस कार्यक्रम में 130 लोगों की गुर्दे की जांच कर उन्हें नि:शुल्क चिकित्सकीय व खान-पान की सलाह प्रदान की गयी। मुख्य रूप से कमलेश जिंदल, दीपिका आर्य, प्रणव, कुलवीर सिंह, राजीव कुमार, मोहित चौधरी, धर्मपाल सिंह आदि ने सहयोग किया।
-टाइम्स न्यूज़ धनौरा.
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