सड़कों, विशेषकर राष्ट्रीय और राजकीय मार्गों के किनारे से शराब की दुकानें हटाने के पीछे न्यायपालिका की मंशा पीकर गाड़ियां चलाने से होने वाली दुघर्टनाओं को कम करना है। इसीलिए सड़क मार्गों से एक निश्चित दूरी से बाहर दुकानें खोलने को कहा गया है। इस निर्णय की मंशा जनहित में है लेकिन सवाल यह है कि क्या ऐसा करने से पीकर गाड़ी चलाने वाले अपनी आदत से बाज आ जायेंगे? या कई नयी समस्यायें उत्पन्न नहीं हो जायेंगी?
शराब पीने वाले चलने से पहले शराब का प्रबंध करके चलते हैं। चंद मीटर दूर उपलब्ध होने से उनपर भला क्या फर्क पड़ेगा। पीने वालों के लिए यह कुछ भी व्यवधान नहीं होगा। पीने वाले तो विशेष मौकों पर पाबंदी के बावजूद शराब हासिल कर ही लेते हैं। बेचने वाले और खरीदने वाले मिलजुलकर काम चला ही लेते हैं।
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गजरौला में शराब की दुकान पर महिलाओं का विरोध हुआ था. (फाइल फोटो) |
कई स्थानों पर पुराने स्थान से हटाकर आबादी के बीच दुकानें खोली गयीं तो महिलाओं और मुहल्ले वालों ने उनका खुला विरोध शुरु कर दिया। बोतलें फोड़ दीं, पेटियां लूट लीं। मारपीट की घटनायें भी बढ़ रही हैं। पुलिस व प्रशासन मुसीबत में है। बढ़ते जनाक्रोश को समाप्त करने का तरीका हरबार डंडा नहीं होता। ऐसे में मामला खतरनाक मोड़ पर पहुंच जाता है। यही नये स्थानों पर दुकानें खोलने से हो रहा है। नयी सरकार बनते ही सूबे में जिस शांति बहाली की उम्मीद जगी थी उसे इस वजह से पलीता लगता दिख रहा है।
राज्य और केन्द्र सरकार दोनों को ही राजस्व घटने की चिंता के साथ पर्यटन और होटल उद्योग में रोजगार घटने की चिंता हो रही है। ऐसे में केन्द्र सरकार के मंत्री बीच का रास्ता तलाशने की बात करने लगे हैं। एक समस्या से निपटने के तरीके ने कई नयी मुसीबतें खड़ी कर दीं जबकि वह समस्या फिर भी ज्यों की त्यों है। पीकर गाड़ी चलाना पहले ही कानूनी जुर्म है। उसी कानून पर मजबूती से अमल हो तो किये नये नियम की जरुरत ही नहीं होगी। जरुरत नये कानून या नियम बनाने की नहीं, पहले से बने कानूनों पर अमल करने की जरुरत है।
-जी.एस. चाहल.
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