नोटबंदी रबी की फसल बोने की तैयारी के ठीक समय पर की गयी थी। उत्तर प्रदेश में अधिकांश छोटे किसान हैं। सीमित कृषि भूमि के कारण वे गन्ना काटकर गेहूं और गेहूं काटकर गन्ना उगाते हैं। गेहूं के लिए छोटे किसान खेत खाली करने को क्रेशरों और कोल्हुओं पर गन्ना डालते हैं। नोटबंदी में क्रेशर और कोल्हू वालों पर नकदी किल्लत के कारण पूरी क्षमता से गन्ना नहीं खरीदा जा सका। जिसके कारण उतने खेत खाली नहीं हो सके जितने होने चाहिए थे। ऐसे में गेहूं कम बोया गया तथा देर से खाली खेतों में बोया ही नहीं गया। अमरोहा और जोया के आसपास के किसानों की एक बड़ी संख्या ने गन्ने के बजाय सब्जियों की खेती शुरु की है। वे टमाटर की फसल में दो वर्षों से लाभ कमा रहे हैं। ऐसे किसानों का गन्ना और गेहूं दोनों से ही मोह भंग हो गया है। वे दूसरी फसलें उगाने के प्रयोग कर रहे हैं।
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खेत खाली न हो पाने से इस बार गेहूं का रकबा घटा है। इसी के साथ देर से बोये गेहूं में उत्पादन भी कम हुआ है। यही कारण है कि गेहूं क्रय केन्द्रों और मंडियों में मौजूद आढतियों की दुकानों पर सन्नाटा है। अंबानी, पतंजलि और टाटा की तरक्की में गरीब होती जनता की तरक्की बताने वाले भाजपा के मठाधीश झूठ बोलने के विशेषज्ञ हैं। यही मीडिया के जरिये अब प्रचार कर रहे हैं कि किसानों ने गेहूं रोक लिया है।
-टाइम्स न्यूज़ गजरौला.
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