केवल कर्ज माफी ही नहीं बल्कि कृषि उपज का उचित मूल्य न मिलने से भी किसान परेशान हैं। महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, यूपी, राजस्थान, गुजरात और हरियाणा जैसे उन राज्यों में किसान सबसे अधिक परेशान हैं जहां भाजपा सरकारें हैं। वे अपनी समस्याओं को लेकर आंदोलित हैं तथा सभी सरकारें उनकी समस्याओं का समाधान करने के बजाय उनके आंदोलनों को ताकत के बल पर कुचलने का प्रयास कर रही हैं। व्यापम जैसे घोटालों को अंजाम देने वाली शिवराज सिंह चौहान सरकार ने जिस तरह अपनी मांगों के लिए प्रदर्शन करने वाले किसानों पर गोली चलाकर कई किसानों को मौत के घाट उतारा वह आजाद भारत में अन्नदाता के साथ सबसे बड़ी सरकारी क्रूरता है। चौहान जैसे लोगों को सत्ता में बने रहने का कोई हक नहीं।
इस घटना ने उपरोक्त राज्यों में चल रहे किसान आंदोलनों को और उग्र करने का काम किया है। गुजरात और उत्तर प्रदेश में जहां किसान जगह-जगह सभायें और प्रदर्शन करने की तैयारियां कर रहे हैं। वहीं राजस्थान और उत्तर प्रदेश में कई जगह किसानों ने सड़क मार्ग जाम कर अपनी नाराजगी व्यक्त की है तथा तीन वर्ष पूर्व प्रधानमंत्री द्वारा किसानों से किये वायदों को याद दिलाया है। परंतु प्रधानमंत्री ने इस बारे में मौन साध लिया है।
भारतीय किसान यूनियन (असली) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौ. हरपाल सिंह ने किसानों की मांगों को पूरा कराने के लिए कई किसान संगठनों को एक मंच पर लाने का प्रयास किया है। उधर दिल्ली में पंजाब और हरियाणा समेत उत्तर भारत के कई राज्यों के किसान नेताओं ने इस संबंध में एक बैठक की थी और किसान हितों की लड़ाई को एकजुटता के साथ तेज करने का निर्णय लिया था। इसमें मध्यप्रदेश के भाजपा से जुड़े किसान संगठन तथा यूपी के भाकियू(टिकैत) नेता भी बोले थे। इन सभी ने एक स्वर में केन्द्र और सभी राज्य सरकारों की कृषि नीतियों को किसान विरोधी करार दिया तथा उसे स्वामीनाथन रिपोर्ट के मुताबिक बदलाव की मांग सरकार से की।
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चौ. हरपाल सिंह, भारतीय किसान यूनियन (असली) के राष्ट्रीय अध्यक्ष . |
हरपाल सिंह ने कहा है कि किसानों को हजारों का कर्ज लेने के लिए लाखों की कृषि भूमि गिरवी रखनी पड़ती है और उद्योगपतियों को सरकार से उधार की भूमि पर उद्योग लगाने की वह भूमि अधिगृहीत कर करोड़ों का कर्ज दे दिया जाता है। उन्हें ब्याज, टैक्स आदि में भी भारी छूट दी जाती है। उससे सरकार या सरकारी बैंकों की आर्थिक हालत खराब नहीं होती।
समय रहते यदि किसानों की सुध सरकार ने नहीं ली और वर्षों पूर्व उनसे किये वायदे पूरे नहीं किये तो पूरे उत्तर और मध्य भारत के किसान सरकार के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन छेड़ने को बाध्य होंगे। अपनी आर्थिक बदहाली की व्यथा सुनाने का अब इसके अलावा उनके पास कोई रास्ता भी नहीं बचा। अब किसान आसानी से भाजपा नेताओं पर भरोसा भी नहीं करेंगे। वे बार-बार छले जाने को बिल्कुल भी तैयार नहीं।
-जी.एस. चाहल.
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