जिस जीएसटी को सरकार पहली जुलाई से लागू करने का मन बना चुकी है, वास्तव में उसे बड़ा कर सुधार कहना उचित है। यदि इसे ईमानदारी से जनहित में अच्छी तरह लागू किया जाये तो देश में जारी कर चोरी पर काफी हद तक लगाम लग सकती है। अब सवाल यही उठता है कि मौजूदा हालात में जीएसटी के जो नियम, कानून तथा कराधान प्रक्रिया लागू की जाने वाली है, क्या वह अपना उद्देश्य पूरा कर पायेगी?
अभी तक तैयार सिलेबस तथा तत्संबंधी तैयारियों के बारे में आर्थिक विद्वानों, रिर्जव बैंक तथा दूसरे बैंकों और औद्योगिक प्रतिष्ठानों के संचालकों से जो जानकारी मिल रही है, उससे ऐसे अधिकांश विशेषज्ञ मौजूदा जीएसटी में बड़े संशोधन और विचार विमर्श के बाद लागू करने के पक्षधर हैं। वे इसमें दिखाई जा रही जल्दबाजी को खतरनाक मान रहे हैं। कई बैंक प्रमुखों ने तो कहा भी है कि अभी बैंक इसके लिए तैयार नहीं हैं।
देश पहले ही नोटबंदी की मार से आहत है. बैंकों का कारोबार ठप्प है. आर्थिक विकास धड़ाम हुआ है. रोजगार न मिलने से युवा शक्ति हताश और उद्वेलित हैं. यदि जीएसटी भी राह से भटक गयी तो हालात बद से बदतर हो जायेंगे.
जीएसटी सुनने और समझाने में जितना अच्छा लग रहा है, यह लागू करने से पूर्व बनायी जाने वाली नीति के लिए उससे अधिक जटिल है। न तो छोटे व्यवसाय करने वालों को इसकी जानकारी है और न ही वे इतनी आसानी से इसे समझ पायेंगे। इसी के साथ न ही हमारे पास जरुरत के मुताबिक सीए उपलब्ध हैं। इससे अचानक अफरातफरी मचने का खतरा है। कई सख्त नियमों के कारण विभागीय अधिकारियों का खौफ भी बढ़ेगा जो इंस्पेक्टर राज से भी खतरनाक होगा। हमारे देश में सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार पहले ही व्याप्त है। इससे उसके बढ़ने का खतरा है। नोटबंदी की तरह इसमें आप बार-बार नियम नहीं बदल सकते। इसका जो ढांचा तैयार हो जायेगा उसमें बड़ा फेरबदल न तो आसान होगा और न ही खतरा कम करने वाला। जीएसटी जैसी महत्वपूर्ण योजना को जल्दबाजी के बजाय तसल्ली से पूरी तैयारी के साथ लागू किया जाना चाहिए।
-जी.एस. चाहल.
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