भारतीय रेलों में यात्रा करना आजकल सुरक्षित नहीं रह गया है। वास्तव में रेलमंत्री सुरेश प्रभु का यह विभाग पूरी तरह से प्रभु की कृपा पर ही चल रहा है। रेलगाड़ियों की रफ्तार भले ही न बढ़ी हो लेकिन रेल दुघर्टनाओं की गति अबाध रुप से बढ़ती जा रही है। खतौली में उत्कल कलिंग एक्सप्रेस के चौदह डिब्बे पटरी से उतरकर एक दूसरे पर चढ़कर जिस तरह क्षतिग्रस्त हुए हैं उससे स्थिति की भयावहता का आभास घटनास्थल पर पहुंचे बिना ही हो जाता है। एक डिब्बा तो आबादी के बीच मकान की दीवार में धंस गया। यह संयोग ही था कि उस समय मकान में कोई नहीं था, अन्यथा कई लोग वहां भी बिना बुलाई मुसीबत के शिकार हो सकते थे।
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पुरानी पटरियां चटक रही हैं. उन्हें बदलने का साहस सरकार नहीं जुटा पा रही. |
हर घटना के होते ही जांच की घोषणा की जाती है। जांच करने वाले रेलवे की लापरवाही और आतंकी साजिश, दोनों बिन्दुओं पर जांच करते हुए महीनों लगा देते हैं। सबकुछ पता होने के बावजूद एक औपचारिकता पूरी की जाती है। हकीकत से सरकार और रेल विभाग दोनों वाकिफ हैं लेकिन बीमारी को जानते हुए उसका इलाज नहीं किया जाता। मृतकों और घायलों के संबंधियों को मुआवजा देने की घोषणा कर सरकार पल्ला झाड़ लेती है।
केन्द्र में भाजपा सरकार बनते ही यह कहकर 14 प्रतिशत रेल किराया बढ़ा दिया गया था कि अब भारतीय रेलों में यात्रियों का सफर सुखद और सुरक्षित किया जायेगा। तीन साल बाद यह विभाग सबसे गया-गुजरा हो चुका। बार-बार कई रुट की गाड़ियां कई-कई दिन बंद कर दी जाती हैं। रेल हादसे रिकॉर्ड तोड़ते जा रहे हैं। यात्रियों की लूट की घटनायें बढ़ी हैं तथा खाने में गंदगी और निम्न स्तर के समाचार आम हैं। पुरानी पटरियां चटक रही हैं। उन्हें बदलने का साहस सरकार नहीं जुटा पा रही। इस बार रेल बजट को आम बजट में मिलाकर सरकार ने इशारा कर दिया कि उसके पास रेल के लिए अलग बजट को भी धन नहीं।
-जी.एस. चाहल.
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