पालिकाध्यक्ष के उम्मीदवारों में सबसे अधिक संख्या भारतीय जनता पार्टी का सिंबल पाने की चाहत रखने वालों की है। ऐसे लोग कभी लखनऊ, कभी दिल्ली अपने-अपने आकाओं की गणेश परिक्रमा में जुटे हैं। कुछ लोग आरएसएस से लंबे समय से जुड़े हैं। कई भाजपा से जुड़े हैं और कई मौका देखकर विधानसभा चुनाव से पूर्व भगवा चोला पहनने में सफल रहे हैं। इन सबके अपने-अपने तर्क हैं और अपनी-अपनी कहानियां हैं। चुनावी समय की सूचना ने इन सभी में हलचल तेज कर दी है।
भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार बनने की कोशिश करने वालों में वैसे तो सभी वर्गों के लोग हैं लेकिन जाट और बनिया समुदायों में इनकी संख्या सबसे ज्यादा है। इनमें पूर्व जिला पंचायत सदस्य चौ. वीरेन्द्र सिंह, भाजपा नगर मंडल अध्यक्ष सुरेन्द्र औलख, जिला पंचायत सदस्य पति चौ. भूपेन्द्र सिंह, मूलचंद सेठ, आदि जाट नेता हैं तो अग्रवाल समाज से पूर्व चेयरमेन अनिल गर्ग, पूर्व सभासद कपिल गोयल, राहुल बंसल, पूर्व सभासद अनिल अग्रवाल आदि हैं।
इनके अलावा ज्ञान भारती इंटर कालेज के प्रवक्ता अशोक कुमार कश्यप और रामवीर सिंह भी कमल के प्रबल दावेदार हैं।
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गैर भाजपा उम्मीदवारों में डा. मो. हनीफ, निरंजन सिंह, पूर्व सभासद डा. आशुतोष भूषण शर्मा, जाफर मलिक, उमर फारुख सैफी, सदाबहार प्रचारक मुन्ने मिस्त्री और साबिर सैफी आदि के नाम सामने हैं।
पिछले चुनाव में सूबे में सपा सरकार थी। इसलिए सबसे अधिक उम्मीदवार सपा के थे। जबकि भाजपा का एकमात्र उम्मीदवार ही था। स्थिति को समझ मतदाता भाजपा के पक्ष में एकजुट हो गये जिससे रिकॉर्ड मतों से भाजपा जीती। सपा के वोट बंटने से उसके नाम से लड़ने वाले सभी उम्मीदवार जमानत गंवा बैठे।
इस बार यदि भाजपा अपने बागी उम्मीदवारों को नियंत्रित नहीं कर पायी तो उसके साथ सपा जैसा सलूक होगा। एकजुट होकर भाजपा मैदान में आयी तभी वह सफल होगी। अन्यथा यहां बसपा को हराना आसान नहीं। यहां सपा मैदान से बाहर है जबकि मुख्य मुकाबला भाजपा-बसपा में होने की प्रबल संभावना है।
-टाइम्स न्यूज़ गजरौला.
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