केन्द्र सरकार भले ही पढ़े-लिखे युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के लाख दावे करे लेकिन जमीनी हकीकत इसके विपरीत है। जनपद अमरोहा में दावों की पोल खुलती दिख रही है। वर्ष 1913-14 से मौजूदा वित्त वर्ष तक के आंकड़े गवाह हैं कि इस दिशा में सरकार लगातार अपने हाथ पीछे खींचती जा रही है और स्वरोजगार को बढ़ावा देने में उसकी कोई रुचि नहीं। इस साल प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के अंतर्गत केवल दस बेरोजगारों को ऋण उपलब्ध कराने की स्वीकृति दी गयी है। क्योंकि केन्द्र से ही केवल बीस लोगों की सूची जनपद में मंजूर हुई थी।
वर्ष 13-14 से जहां हर साल लाभार्थियों की संख्या कम की जाती जा रही है। वहीं इस मद में सस्ते दर पर ऋण देने की राशि भी कम की जा रही है। 2013-14 में ऋण राशि जहां 404 लाख रुपये मंजूर की गयी। वहीं 14-15 में 365 लाख कर दी। इसके बाद 15-16 में 213 लाख तथा 16-17 में 198 लाख का ही ऋण स्वीकृत किया गया। इस वर्ष तो अभी तक मात्र 134 लाख रुपयों की ही फाइलें तैयार की गयी हैं जबकि यह भी पता नहीं कि यह धन मंजूर भी होगा या नहीं अथवा होगा तो कब तक। केवल दस नवयुवकों को यह धन कर्ज के रुप में दिया जाना है। लघु उद्योग के उपायुक्त मो. अफजल का कहना है कि केन्द्र सरकार से लक्ष्य तय किया जाता है। इस बार बीस लोगों को ऋण दिलाने का लक्ष्य है। अभी केवल दस नामों का चयन किया गया है। साल के अंत तक दस शेष नामों की फाइल भी तैयार हो जायेंगी। एक युवक को अधिकतम 25 लाख रुपये का नियम है लेकिन यहां दस लोगों को 13.4 लाख के औसत से ऋण स्वीकृति की फाइलें तैयार की गयी हैं। अभी ये बैंक शाखाओं में पता नहीं कब तक पड़ी रहेंगी।
इसके विपरीत बिना सरकारी सहायता के अपने स्तर से दिसम्बर 2015 से जारी ऑनलाइन प्रक्रिया में आवेदन कर 1544 लोगों ने उद्योग स्थापित कर लिये। केन्द्र सरकार के भरोसे केवल दस लोगों को भी काम में अभी सफलता नहीं मिली। अभी उनकी फाइलें बैंक शाखाओं में धूल चाट रही हैं। इसी से पता चल रहा है कि बेरोजगारों को रोजगार प्रदान करने के दावे कितने खोखले और हकीकत से दूर हैं। सरकारी नौकरियों से निराश स्वरोजगार की ओर बढ़ना चाहते हैं लेकिन सरकार दोनों अवसरों से हाथ खींचती जा रही हैं।
-जी.एस. चाहल.
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