निकाय चुनाव : फैसला जनता के दरबार में

हम सभी को नगर की बेहतरी के लिए ऐसे व्यक्ति को चुनना होगा जो नगर को सही दिशा में आगे ले जा सके.

निकाय चुनाव में उन जागरुक मतदाताओं को और भी जागरुक होने की जरुरत है जो जन समस्याओं को लेकर मुखर रहते हैं। उन्हें सबसे पहले तो सभी से मतदान करने का आहवान करना चाहिए। इसी के साथ लोगों को यह भी समझाने का प्रयास करना चाहिए कि खूब सोच समझ कर मत का प्रयोग करें। जिससे स्वच्छ छवि और भाई-भतीजावाद से रहित नेता के हाथ में नगर की कमान पहुंचे।

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निकाय चुनाव में भाग ले रहे लोगों के बारे में स्थानीय लोगों को बहुत कुछ पता होता है। कई लोग आजमाये हुए भी होते हैं। उन्हें मौका दिया होता है उनके बारे में काफी जानकारी मिल जाती है। पांच साल बाद मौका मिला है और पांच साल के लिए फिर किसी के हाथ में नगर की किस्मत सौंपनी है।

ऐसे में गंभीर नागरिकों को इसपर मंथन करना चाहिए। लोग मंथन कर भी रहे हैं। जाति, धर्म या वर्ग अथवा भाई-भतीजावाद हम में से अधिकांश को सोचने पर मजबूर करता है। हम सभी को अपने तथा अपने नगर की बेहतरी में समन्वय स्थापित करते हुए गंभीरता और ईमानदारी से ऐसे व्यक्ति को चुनना होगा जो नगर को सही दिशा में आगे ले जा सके।

नहीं तो फिर वही काम शुरु होगा। कभी सफाई व्यवस्था, कभी पेयजल, कभी टूटे-फूटे मार्गों तथा कभी कर्मचारियों की लूट-खसोट की समस्याओं के लिए धरने-प्रदर्शन करने होंगे। कभी राशन, कभी टैक्सों में भेदभाव के लिए, कभी विद्युत व्यवस्था आदि समस्याओं के लिए आंदोलन। इन सबसे बचने का समय है। सोच-समझकर हमें फैसला करना होगा -नहीं फिर पांच साल तक घुटना होगा।

-जी.एस. चाहल.


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