राज्य उपभोक्ता परिषद ने साल दर साल घाटे के लिए बिजली कंपनियों को जिम्मेदार ठहराते हुए पावर कॉर्पोरेशन प्रबंधन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाये हैं। घाटे के बहाने एक बार फिर से किसानों, ग्रामीणों तथा गरीब उपभोक्ताओं पर बिजली दरें बढ़ाकर भारी बोझ डाला गया है। इस बार बिजली बिलों में बढ़ोतरी के पिछले सभी रिकार्ड तोड़ दिये और सबसे मजेदार बात यह है कि उद्योगों पर बिल्कुल भी भार नहीं डाला गया। उनकी दरें पूर्ववत ही रहेंगी। किसानों, ग्रामीणों तथा गरीबों के शोर मचाने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की चुप्पी और भी खतरनाक है। इससे उनके मूक समर्थन का यह स्पष्ट संकेत है।
लेखक अपना नहीं बल्कि उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कथन उदधृत करना चाहता है। उन्होंने कहा कि पावर कॉर्पोरेशन के गलत प्रबंधन और नीतियों के कारण बिजली क्षेत्र में घाटा 78 हजार करोड़ से ऊपर पहुंच गया है। इस घाटे की भरपाई के लिए जहां उपभोक्ताओं के लिए बिजली दरों में भारी इजाफा किया जा रहा है वहीं विभागीय भ्रष्टाचार को रोकने का कोई प्रबंध नहीं किया जा रहा। निचले स्तर से लेकर उच्च अधिकारियों के कारनामों की जांच की जाये तो हकीकत सामने आयेगी।
बिना किसी योजना के करोड़ों रुपये खर्च कर कंसल्टेंट रखे जा रहे हैं। केन्द्र सरकार द्वारा चलायी जा रही उदय और पावर आल योजना के लिए भी करोड़ों की फीस पर कंसल्टेंट रखे जा रहे हैं। एक ओर उपभोक्ताओं को आयेदिन बिजली दरें बढ़ने का संकट झेलना पड़ रहा है। दूसरी ओर उपभोक्ताओं से मिले धन के एक बड़े भाग को कंसल्टेंटों को दिया जा रहा है। ऐसे में दरें बढ़ने के बावजूद पावर कार्पोरेशन का घाटा खत्म नहीं हो रहा। स्वयं कार्पोरेशन के अधिकारियों का कहना है कि किसानों और गरीबों पर 57 से 63 फीसदी तक दरों का इजाफा कर जो भार डाला जा रहा है उसके बाद भी कॉर्पोरेशन करोड़ों के घाटे में रहेगा।
बिजली सुधार के नाम पर कंसल्टेंट रखे गये हैं। इनपर पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है। फिर भी बिजली सुधार की ऐसी योजनाओं में से अधिकांश विफल हुई हैं। प्रबंधन खुद सुधार की गारंटी लेने को तैयार नहीं है।
कंसल्टेंटों पर अथाह धन बरबाद होने के अलावा भी उपभोक्ताओं के खून चूसने के कई ढंग अधिशासी अभियंताओं, उपखंड अधिकारियों तथा कनिष्ठ अभियंताओं ने ईजाद कर रखे हैं। स्वेच्छा से विद्युत बिल जमा करने वाले ईमानदार उपभोक्ताओं को बिल में विलंब-कर जुड़ा होने के बावजूद भुगतान किये कम्प्यूटर बिल के अलावा तीन सौ रुपये की हस्तलिखित पर्ची दी जाती है। उपभोक्ता के यह कहने के बावजूद कि जो बिल उसे दिया गया है, वह उसका पूरा भुगतान कर रहा है तो यह अलग से उगाही किस लिए। स्वयं एसडीओ द्वारा धमकाया जाता है कि यह कनैक्शन जोड़ने का शुल्क है। उपभोक्ता जब कहता है कि उसका कनैक्शन तो चालू है। तब कहा जाता है कि अभी कटवा देते हैं। नाम लिखो। बिजली चोरी आदि को रोकने में विफल अधिकारी इस तरह ईमानदार उपभोक्ताओं का शोषण कर रहे हैं। इस रसीद को बिजली विभाग के बजाय एसडीओ, बिजली बिल वसूली के ठेकेदार से कटवाता है। इसकी व्यापक जांच की जरुरत है, लेकिन जांच कौन करेगा? नीचे से ऊपर तक पूरा पावर कार्पोरेशन कुप्रबंधन का शिकार है। सरकार की चुप्पी प्रबंधतंत्र को बल प्रदान करती है।
गजरौला के एक उपभोक्ता ने एसडीओ राहुल गुप्ता की शिकायत एक विधायक से की तो विधायक के डांटने पर एसडीओ ने यह कहकर पीछा छुड़ाया कि वह उपभोक्ता से लिए पैसे वापस दे देगा। वास्तव में पावर कार्पोरेशन भ्रष्टाचार की गिरफ्त में है।
-जी.एस. चाहल.
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