भरतिया फाउंडेशन और रोटरी क्लब के संयुक्त प्रयास से वर्षों पूर्व स्थापित ट्रॉमा सेंटर मूलभूत सुविधाओं के अभाव में सफेद हाथी बनकर रह गया है। गरीब जूता गांठने और ठेला लगाने वालों से लेकर क्षेत्र के ग्राम प्रधानों तक से इसके लिये लाइफ साइंसेज के कथित समाजसेवी अधिकारियों ने धन जुटाया था। कहा गया था कि कमी पड़ने पर बाकी खर्च भरतिया फाउंडेशन और रोटरी क्लब देगा। क्षेत्र में फैली चर्चा के मुताबिक करोड़ों रुपए ट्रामा सेंटर के नाम पर जुटाकर भरतिया फाउंडेशन और रोटरी क्लब पदाधिकारी ट्रॉमा सेंटर के नाम पर बहुत बड़े समाजसेवी बनने का नाटक करने में सफल हो गए।
हमने एकत्र धन की बाबत मालूम किया तो एक अधिकारी सुनील दीक्षित ने कहा कि कुछ लाख रूपये ही एकत्र हुए थे जबकि प्राप्त धन का कई गुना धन ट्रॉमा सेंटर की इमारत बनाने में खर्च हो गया।
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जिस इमारत में फाउंडेशन का एक अस्पताल पहले से चल रहा था उसी इमारत को थोड़ा विस्तार देकर ट्रॉमा सेंटर का उद्घाटन 2 वर्ष पूर्व कर दिया गया था। जहां अभी तक चिकित्सक और जरूरी चिकित्सकीय संसाधनों का अभाव है। सड़क दुर्घटनाओं में सबसे अधिक मौतें सिर में चोट से होती हैं। ऐसे में ट्रॉमा सेंटर में सबसे जरूरी एक न्यूरो सर्जन होता है, साथ ही न्यूरोसाइंस से संबंधित उपकरण भी होने चाहिये। यहां दोनों में कुछ भी नहीं है। यहां केवल सामान्य घायल व्यक्ति की पट्टी कर उसे हायर सेंटर को रेफर करने का बंदोबस्त है। इससे बेहतर व्यवस्था तो यहां के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पर भी उपलब्ध है।
गौरतलब है कि देश की राजधानी से प्रदेश की राजधानी को जोड़ने वाले नेशनल हाईवे पर भारी यातायात के कारण यहां सड़क दुर्घटनाएं आम बात हैं। ट्रॉमा सेंटर के अभाव में ऐसे कई घायल दम तोड़ देते हैं जिन्हें समय पर उचित चिकित्सा नहीं मिलती है। मिले तो वह बचाए जा सकते थे। इसीलिए लंबे समय से एक सुचारु तथा संपूर्ण ट्रॉमा सेंटर की मांग करते रहे हैं।
-टाइम्स न्यूज़ गजरौला.
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