केंद्र सरकार के बजट पर इस बार भी हर बार की तरह मिली-जुली प्रतिक्रियायें आई हैं। इसमें जहां कुछ वास्तव में हकीकत है जबकि अनेक लोगों ने उन्हें राजनीतिक भेदभाव के साथ व्यक्त किया है। आमतौर पर इस बजट को किसानों और ग्रामीण भारत का बजट बताया जा रहा है। यह प्रचार करने का दौर शुरू कर दिया गया है कि मानो इस बार सरकार ने किसानों और ग्रामीण आबादी को मालामाल करने का काम शुरू कर दिया है। कई ऐसे लोग भी जिन्होंने मोदी सरकार के बजट को बारीकी से पढ़ने या उस पर विचार करने का समय भी नहीं निकाला, एक-दो बातों को सुनकर या वित्त मंत्री के भाषण को सुनकर प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी। जबकि यह बजट पूरी तरह पारदर्शी नहीं कहा जा सकता। इसमें जो घोषणाएं की गई हैं उन्हें पूरा करने की उम्मीद करने के कारण नहीं बताए गए। यह कह देना बड़ा आसान है कि किसानों की आमदनी डेढ़ गुना की जाएगी लेकिन 4 साल में सरकार ने किसानों की आय कम कर दी। पिछले लोकसभा चुनाव में किसानों को लागत का डेढ़ गुना मूल्य देने के वायदे पर सत्ता में आई और उसके विपरीत किसानों की आय लगातार घटती गई। हालत यह है कि देश के किसान की आय बढ़ने के बजाय बीते 29 वर्षों के निचले स्तर पर पहुंच गई यानि किसानी आगे बढ़ने के बजाय तीन दशक पीछे चली गई।
मोदी सरकार में इन 4 वर्षों में उर्वरक, कीटनाशक, डीजल, कृषि यंत्र और बिजली आदि की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हुई। जबकि कृषि उत्पादों का बढ़ने के बजाए गिरता गया। गेहूं और गन्ना नाम मात्र को बढ़ाया गया जबकि धान, दालें, आलू और टमाटर आदि के भाव गिरते रहे। हाल में टमाटर और आलू किसानों को सड़कों तक पर फेंकने पड़े हैं।
मोदी सरकार के कार्यकाल में खेती करना लगातार महंगा होता जा रहा है। कृषि उत्पादों के मूल्य नहीं बढ़ाए जा रहे। इससे किसानों तथा कृषि मजदूरों की आर्थिक कमर टूट गई, जिसका असर व्यापार, उद्योग तथा सरकार के कर संग्रह सभी पर पड़ा है। हमारे जैसे लोग बार-बार सरकार से देश के लिए कृषि का संकट हल करने का शोर मचाते आ रहे हैं लेकिन सरकार नहीं सुन रही। लोकसभा चुनाव निकट आने पर मोदी और उनके साथियों ने फिर से किसानों की स्तुति शुरू कर दी है। जबकि बजट इस बार भी किसानों को छलने के लिए है। बार किसान ऐसे लोगों को सबक सिखाने को तैयार बैठा है।
-जी.एस. चाहल.
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