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अभी गठबंधन की चर्चा तेज है जिसमें कुछ पेच भी हैं जिन्हें पार्टी मंथन करने के बाद सुलझाने की उम्मीद जरुर लगाये है. |
यूपी के समीकरण अलग हैं. यहाँ दलित और मुस्लिम वोट बैंक पर हमेशा से पार्टियों की नज़र रहती है. खासकर सपा और बसपा के लिए यह अहम हो जाता है कि वे अपने-अपने वोट बैंक को पक्का करें. ऐसा प्रयास वे हर बार करते रहे हैं. उनका अभी तक के चुनावों के दौरान तरीके से यह पता चला है कि सपा मुस्लिम और यादव वोट बैंक पर ज्यादा जोर देती है, जबकि बसपा का वोट बैंक दलित और मुस्लिम है. वो अलग बात है कि दलित वोट मायावती के लिए सबसे अहम भूमिका में रहते हैं. जबकि मुस्लिम वोट सपा, बसपा और कांग्रेस के पास बंट जाते हैं.
2014 में नरेंद्र मोदी ने अपने प्रचार के बल पर सपा, बसपा और कांग्रेस को बड़ा झटका दिया था जिसका असर हाल-फिलहाल तक महसूस किया जा सकता है. लेकिन यूपी में पिछले दिनों हुए उपचुनावों ने भी बीजेपी को झटका दिया जिसका असर उसपर भी देखता जा सकता है. मायावती और अखिलेश यादव का मिलना बीजेपी को हिला कर रख सकता है, यह चर्चा राजनीतिक तौर पर हो रही है. मगर यूपी में कांग्रेस कहीं फिट नहीं बैठती. लगता है कि बुआ और बबुआ के बीच फंस गए हैं राहुल बाबा.
जातीय आंकड़ों की बात करें तो यूपी में दलित 20 फीसदी, मुस्लिम 19 फीसदी और यादव 9 फीसदी मिलाकर 48 प्रतिशत के करीब होता है जो जीत के लिए मुश्किल नहीं दिखता. ऐसा लगता है इस आंकड़े के साथ तो सपा-बसपा यूपी को फ़तेह कर लेंगे. लेकिन कांग्रेस के लिए यहाँ मुश्किल तब हो जाती है जब वह अपने वजूद को खतरे में देखती है. यह सच है कि यूपी में बीजेपी को सत्ता से दूर करने के लिए कांग्रेस खुद को अकेला भी पा रही है. उसके लिए बड़ा ही कठिन समय मालूम पड़ता है. अभी गठबंधन की चर्चा तेज है जिसमें कुछ पेच भी हैं जिन्हें पार्टी मंथन करने के बाद सुलझाने की उम्मीद जरुर लगाये है, लेकिन सवाल वही कि क्या कांग्रेस यूपी में खुद को कमजोर कर रही है?