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विराम लगाने के बजाय देश के कर्णधार उस पर गर्व कर रहे हैं तथा नसबंदी की जगह नोट बंदी कर देते हैं. |
देश में जरूरत है नसबंदी की और सरकार ने कर दी नोटबंदी। इस उलटफेर के दुष्परिणाम पूरा देश भुगत रहा है तथा अधिकांश समस्याओं की जड़ भी बेरोकटोक बढ़ रही आबादी है। इससे भी मजेदार बात यह है कि देश पर आबादी का बोझ डालने वाले लोग ही अपने लिए मुफ्त की सरकारी सुविधाओं और रियायतों की मांग भी सबसे अधिक कर रहे हैं।
हमारे देश की सरकार को बढ़ती आबादी पर गर्व है। हमारे प्रधानमंत्री दूसरे देशों में जाकर बार-बार कहते हैं कि भारत सवा अरब की आबादी का देश है, मेरे देश में खरीददारों की भीड़ है, यहां पैसा लगाओ और इस बड़े बाजार के ग्राहकों की जेब खाली करवा कर अपनी जेब भर लो। प्रधानमंत्री को यहां बढ़ रही भीड़ से आनंद आ रहा है। वह कहते हैं वे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री हैं। उनके यहां सबसे अधिक ग्राहक हैं।
जबकि भारत की जनता की हालत उस फिल्मी गाने की तरह है -'जेब खाली है मगर व्यापार करता हूं।' जनता की जेब खाली है। इस से भी आगे देश की सरकारी बैंकों तक में नकदी नहीं। अपराधों को रोकने के लिए सख्त से सख्त कानून बनाए जा रहे हैं लेकिन उन पर लगाम नहीं लग रही। लूट, डकैती, हत्या और रेप की घटनायें कम होने के बजाए बढ़ रही हैं। यूपी के कासगंज में पिछले दिनों रात में डकैती करने वालों ने परिवार के तीन लोगों को मौत के घाट उतार दिया। चौबीस घंटों में वहां यह दूसरी वारदात है।
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बढ़ते अपराधों के पीछे बढ़ती आबादी और संसाधनों पर बढ़ता दबाव तथा इसी कारण बढ़ रही बेरोजगारी बड़े कारण हैं। खाली, निराश और हताश नवयुवक अपराध तथा नशे की ओर बढ़ रहे हैं। चंद लोग देश के तमाम संसाधनों और दूसरी सुविधाओं का उपभोग कर रहे हैं। अभावग्रस्त देश की युवा पीढ़ी का बड़ा हिस्सा कुंठा और भेदभाव के कारण गलत रास्तों की ओर मुड़ रहा है जिसमें कई युवा आतंकवाद की राह भी चलने को मजबूर हुए हैं। पढ़े लिखे बेरोजगार की लगातार बढ़ रही भीड़ देश के लिए संकट बनती जा रही है। विराम लगाने के बजाय देश के कर्णधार उस पर गर्व कर रहे हैं तथा नसबंदी की जगह नोटबंदी कर देते हैं।
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-जी.एस. चहल.